Indira Gandhi Birth Anniversary 2025: 19 नवंबर 2025 को भारत की आयरन लेडी इंदिरा गांधी की जन्म शताब्दी का यह दिन हमें उनके साहस, दूरदृष्टि और चुनौतीपूर्ण निर्णयों की याद दिलाता है। भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने देश को आर्थिक, सामाजिक और विदेश नीति के मोर्चों पर नई दिशा दी। उनके नेतृत्व में भारत ने वैश्विक पटल पर अपनी धाक जमाई, लेकिन कुछ फैसलों ने विवादों को भी जन्म दिया। इस लेख में हम उनके ऐतिहासिक योगदानों, शेख मुजीबुर रहमान और रिचर्ड निक्सन जैसे नेताओं से संबंधों तथा विवादित निर्णयों पर नजर डालेंगे।

इंदिरा गांधी का उदय: नेहरू की बेटी से प्रधानमंत्री तक
इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ। पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी होने के नाते वे स्वतंत्रता संग्राम के दौर में पली-बढ़ीं। 1966 में वे प्रधानमंत्री बनीं और 15 साल तक (दो बार) इस पद पर रहीं। उनके शुरुआती वर्षों में भारत की आर्थिक कमजोरी और सामाजिक असमानताओं ने उन्हें गरीबी हटाओ का नारा देकर जनता से जोड़ा।
ऐतिहासिक निर्णय: भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाना
इंदिरा गांधी के फैसलों ने भारत को आत्मनिर्भर बनाया। 1969 में 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग पहुंच को बढ़ाया और आर्थिक समावेशिता को मजबूत किया। हरित क्रांति के तहत कृषि उत्पादन दोगुना हो गया, जिससे भारत अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना। 1974 में पोखरण परमाणु परीक्षण ने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र घोषित किया, जो रक्षा नीति का मील का पत्थर साबित हुआ।
सबसे ऐतिहासिक कदम 1971 का बांग्लादेश मुक्ति युद्ध था। पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली लोगों पर अत्याचारों के खिलाफ इंदिरा ने मुक्ति वाहिनी को गुप्त सहायता दी। मात्र 13 दिनों में पाकिस्तान की पराजय हुई और बांग्लादेश का जन्म हुआ। यह भारत की कूटनीतिक और सैन्य विजय थी।
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शेख मुजीबुर रहमान से बहन जैसा बंधन
शेख मुजीबुर रहमान, बांग्लादेश के संस्थापक, को इंदिरा ‘बहन’ कहते थे। 1971 के संकट में इंदिरा ने लाखों शरणार्थियों की मदद की और मुजीब की आजादी सुनिश्चित की। मुजीब की 1975 में हत्या के बाद उनकी बेटी शेख हसीना को इंदिरा ने भारत में शरण दी। आज भी भारत-बांग्लादेश संबंधों की नींव इंदिरा के इस विश्वास पर टिकी है। शेख हसीना के हालिया भारत प्रवास ने इस ऐतिहासिक बंधन को ताजा कर दिया।
रिचर्ड निक्सन से टकराव: शीत युद्ध की छाया
अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से इंदिरा के संबंध तनावपूर्ण रहे। निक्सन पाकिस्तान के पक्ष में थे, क्योंकि अमेरिका चीन से गठबंधन चाहता था। 1971 युद्ध में अमेरिकी सातवीं बेड़े को बंगाल की खाड़ी भेजा गया, लेकिन इंदिरा की इंडो-सोवियत संधि ने इसे विफल कर दिया। डिक्लासिफाइड दस्तावेजों में निक्सन की अपमानजनक टिप्पणियां उजागर हुईं, फिर भी इंदिरा अडिग रहीं। यह टकराव भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का प्रतीक बना।
विवादित निर्णय: आपातकाल की काली छाया
इंदिरा के फैसलों में कुछ विवादास्पद भी थे। 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने आपातकाल घोषित कर दिया, जो 21 महीने चला। प्रेस सेंसरशिप, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और संविधान संशोधन ने लोकतंत्र पर सवाल उठाए। हालांकि, वे इसे आर्थिक स्थिरता के लिए जरूरी बताती रहीं, लेकिन इससे उनकी छवि प्रभावित हुई। 1977 के चुनाव में हार के बाद वे लौटीं, लेकिन यह अध्याय आज भी बहस का विषय है।
इंदिरा गांधी का निजी जीवन: विवाह और परिवार
इंदिरा गांधी का निजी जीवन भी उतना ही चर्चित रहा जितना उनका राजनीतिक सफर। 1942 में मात्र 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने फिरोज गांधी से प्रेम-विवाह किया। फिरोज एक पारसी थे और स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय कार्यकर्ता। नेहरू परिवार शुरू में इस शादी के खिलाफ था, खासकर महात्मा गांधी के नाम से जुड़े होने की वजह से, लेकिन इंदिरा अपनी पसंद पर अडिग रहीं। यह शादी 26 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में बड़ी सादगी से हुई।
इस दंपति के दो पुत्र हुए — राजीव गांधी (जन्म 1944-1991) और संजय गांधी (जन्म 1946)। राजीव शुरू में राजनीति से दूर रहे और पायलट बने, लेकिन संजय की 1980 में विमान दुर्घटना में मृत्यु के बाद इंदिरा ने उन्हें राजनीति में उतारा, बाद में राजीव भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने, जिनकी 21 मई 1991 में हत्या कर दी गई। इंदिरा और फिरोज का वैवाहिक जीवन अंत तक खुशहाल नहीं रहा। 1950 के दशक में दोनों अलग-अलग रहने लगे, हालांकि तलाक कभी नहीं हुआ। फिरोज गांधी का निधन 1960 में दिल का दौरा पड़ने से हो गया। इंदिरा ने कभी दूसरी शादी नहीं की और जीवनभर अपने बच्चों की परवरिश अकेले की।
परिवार के प्रति उनका लगाव गहरा था। वे राजीव को “राजू” और संजय को “सानू” प्यार से बुलाती थीं। निजी जीवन की कठिनाइयों के बावजूद इंदिरा ने कभी अपने पारिवारिक दायित्वों को राजनीति पर हावी नहीं होने दिया। उनकी बहू सोनिया गांधी और पोते-पोती राहुल व प्रियंका आज भी गांधी-नेहरू परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
इंदिरा गांधी की विरासत: प्रेरणा और सबक
इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को हुई, लेकिन उनकी विरासत अमर है। उन्होंने महिलाओं को सशक्तिकरण का संदेश दिया और भारत को वैश्विक नेता बनाया। उनके साहसिक फैसले आज भी प्रासंगिक हैं, जबकि विवाद हमें लोकतंत्र की रक्षा का पाठ पढ़ाते हैं। जन्मदिन पर उन्हें नमन करते हुए, हम उनके योगदान को याद करें।








