Dame Jane Goodall death: यूँ तो बहुत लोग संसार में आते हैं और चले जाते हैं, पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके इस दुनिया से विदा होने पर विश्व में चर्चाएं होती हैं। कल ही, 1 अक्टूबर 2025 को, दुनिया ने एक ऐसी महान आत्मा को खो दिया जिन्हें बहुत काम लोग जानते थे मगर उनके जाने पर विश्वभर के लोग उन्हें खोज रहे हैं। वो नाम हैं डेम जेन गुडॉल (Dame Jane Goodall ), एक ऐसी महिला जिन्होंने जंगलों में रहकर चिंपैंजियों को मित्र बनाकर मानवता की मिशाल कायम की, उनकी मृत्यु कैलिफोर्निया में एक व्याख्यान देते समय हो गई। वे 91 वर्ष की थीं।
जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट ने आधिकारिक बयान जारी कर बताया कि वे एक व्याख्यान के बाद आराम कर रही थीं, जब अचानक स्वास्थ्य खराब हो गया। डॉक्टरों के अनुसार, ये हार्ट फेलियर से जुड़ा था, जो बढ़ती उम्र और निरंतर यात्राओं की थकान से हुआ।

Dame Jane Goodall Tribute: दुनिया भर से लगी श्रद्धांजलि देने की होड़
उनकी मृत्यु पर दुनिया भर से श्रद्धांजलि उमड़ी – अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, “उनकी आवाज खामोश नहीं होगी,” जबकि संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें “पृथ्वी की मां” कहा। जेन ने अपनी अंतिम सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था, “आशा कभी न मरो, बस कोशिश करो।” उनका निधन सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं, बल्कि एक शताब्दी का अंत है, लेकिन उनकी विरासत हमें उनके कार्यों को आगे बढ़ाने में मदद करेगी।
उनकी जीवन किसी पुस्तक की तरह था – बचपन से अफ्रीका के जाने के सपने, जंगलों में संघर्ष, वैज्ञानिक खोजें और आखिर में वैश्विक परिवर्तन की लहर। जेन ने दुनिया को दिखाया और सिखाया कि जानवर भी मनुष्यों जैसी जिवंत भावनाएं रखते हैं, और हम इंसानों की जिम्मेदारी है कि हम उनका संरक्षण करें। उनकी विरासत हमें हौसला देती रहेगी – एक पेड़ लगाओ, प्लास्टिक कम करो, बस इतना ही काफी है उन्हें श्रद्धांजलि के लिए। चलिए जानते हैं पूरी कहानी।
विशेषता | विवरण |
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नाम | डेम जेन गुडॉल (Dame Jane Goodall ) |
पूरा नाम | वैलरी जेन मॉरिस-गुडॉल |
जन्म तिथि | 3 अप्रैल 1934 |
जन्म स्थान | लंदन, इंग्लैंड |
मृत्यु तिथि | 1 अक्टूबर 2025 |
मृत्यु स्थान | कैलिफोर्निया, अमेरिका (व्याख्यान के दौरान) |
उम्र | 91 वर्ष |
पेशा | प्राइमेटोलॉजिस्ट, पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण कार्यकर्ता, लेखिका |
प्रसिद्धि | चिंपैंजियों पर 60+ वर्षों का अध्ययन और संरक्षण |
मुख्य संस्था | जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट (1977 में स्थापित) |
Dame Jane Goodall Early Life: प्रारम्भिक जीवन जीवन
जेन का जन्म 3 अप्रैल 1934 को लंदन के एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता मॉर्टिमर एक इंजीनियर थे, जो द्वितीय विश्व युद्ध में लड़े, और मां वान्ने एक लेखिका। उनकी एक छोटी बहन का नाम जूडी था। बचपन से जेन को पशुओं से प्यार था। दो साल की उम्र में मां ने उन्हें ‘जुबली’ नाम का stuffed चिंपैंजी खिलौना दिया – लंदन चिड़ियाघर के पहले चिंपैंजी के नाम पर। ये खिलौना जेन की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बना रहा।

जानकारी | संबंध |
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जन्म | 3 अप्रैल 1934 |
पिता | मॉर्टिमर मॉरिस-गुडॉल (इंजीनियर) |
मां | वान्ने जोसेफ (लेखिका) |
छोटी बहन | जूडी गुडॉल |
छोटी जेन घंटों जानवरों को निहारती रहती। एक बार वे मुर्गी के अंडे निकलने के लिए घोंटे भर बाड़े में छिपी रहीं! 8-10 साल की उम्र में ‘टार्जन’ और ‘डॉ. डुलिटल’ किताबें पढ़कर अफ्रीका जाने सपना बुनने लगीं। लेकिन घर की आर्थिक तंगी से 18 साल में स्कूल भी छोड़ना पड़ा। वेट्रेस, टाइपिस्ट जैसी नौकरियां कीं, लेकिन सपना कभी नहीं छोड़ा। 1957 में, 23 साल की उम्र में, दोस्त के साथ केन्या गईं। वहां प्रसिद्ध पुरातत्वविद् लुई लीकी से मिलीं, जो उनके गुरु बने। लीकी ने कहा, “चिंपैंजियों को समझो, मानव विकास का राज खुलेगा।”
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Education: शिक्षा
जेन की पढ़ाई किताबों से ज्यादा जंगलों में हुई। कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं, लेकिन जुनून था कुछ नया सीखने का। 1960 में, 26 साल की, तंजानिया के गोम्बे स्ट्रीम नेशनल पार्क पहुंचीं। नोटबुक, दूरबीन और शांतिपूर्वक चिंपैंजियों को देखा। सबने कहा, “लड़की अकेले जंगल में?” लेकिन जेन ने कर दिखाया। उनके रीसर्च इतने गहरे थे कि 1965 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने बिना बैचलर के PhD की डिग्री दी – एथोलॉजी में। बाद में कई मानद उपाधियाँ मिली।
शिक्षा तालिका
वर्ष | डिग्री/कोर्स | संस्थान |
---|---|---|
1952 | स्कूल छोड़ा (18 वर्ष की उम्र) | स्थानीय स्कूल |
1960-1965 | चिंपैंजी फील्ड रिसर्च | गोम्बे स्ट्रीम, तंजानिया |
1965 | PhD इन एथोलॉजी | कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी |
2006 | मानद डॉक्टर ऑफ साइंस | ओपन यूनिवर्सिटी ऑफ तंजानिया |
2019 | मानद डॉक्टरेट | येल यूनिवर्सिटी |
जंगल को बनाया करियर
1960 से गोम्बे में चिंपैंजियों पर गहन अध्ययन शुरू। उन्होंने चिम्पैंजियों को नाम देकर देखा – डेविड ग्रे बीयर्ड, फ्लो। सबसे बड़ी खोज: चिंपैंजियां टूल्स बनाती हैं, जैसे टहनियों से दीमक निकालना! ये साबित किया कि इंसान अकेले नहीं। 1963 में नेशनल ज्योग्राफिक ने उनके साथ जंगल और चिम्पैंजियों को कवर किया, जिससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली। 1977 में जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जो वन और चिम्पैंजियों के संरक्षण, शिक्षा पर काम करता है। 1991 में ‘रूट्स एंड शूट्स’ शुरू – 70+ देशों में युवाओं को पर्यावरण की शिक्षा देता है।
1994 में TACARE (Lake Tanganyika Catchment Reforestation and Education) प्रोग्राम से अफ्रीका में जंगलों को बचाया, स्थानीय महिलाओं को सशक्त किया। जेन ने 40+ किताबें लिखीं, जैसे ‘इन द शैडो ऑफ मैन’ (1971), ‘रिजन फॉर होप’ (1999)। साल में 300 दिन यात्रा, व्याख्यान। 2025 तक सक्रिय रहीं – फोर्ब्स सस्टेनेबिलिटी समिट में बोलीं। उनका काम महिलाओं को विज्ञान में प्रेरित करता रहा। जेन ने कहा था “समुदायों की मदद बिना, हम जंगल या जानवर नहीं बचा सकते।”

चिंपैंजी टूल यूज: जेन की क्रांतिकारी खोज
जेन की सबसे रोमांचक खोज 1960 के शुरुआती दिनों में गोम्बे जंगल में हुई, जब वे महीनों चिंपैंजियों को करीब से देख रही थीं। पहले वैज्ञानिक मानते थे कि सिर्फ इंसान ही टूल्स (उपकरण) बनाते और इस्तेमाल करते हैं – ये हमारी बुद्धिमत्ता का सबूत था। लेकिन जेन ने देखा कि एक चिंपैंजी मादा, जिसका नाम डेविड ग्रे बीयर्ड था, एक पेड़ के पास बैठी टहनियां तोड़ रही थी। वो टहनियों के पत्ते साफ कर रही थी, उन्हें पतला बना रही थी, और फिर उनसे जमीन के छोटे-छोटे छेदों में डालकर दीमक (टर्माइट्स) निकाल रही थी! ये ‘टर्माइट फिशिंग’ कहलाता है – जैसे मछली पकड़ना, लेकिन दीमक को।
जेन ने नोट किया कि चिंपैंजियां सिर्फ टूल्स ढूंढती नहीं, बल्कि उन्हें बदलती भी हैं। उदाहरण के लिए, कठोर नट्स तोड़ने के लिए पत्थरों का इस्तेमाल करतीं, जो ‘नट क्रैकिंग’ है। ये व्यवहार सीखा हुआ था – मां से बेटे को सिखाया जाता। जेन के शोध से साबित हुआ कि चिंपैंजियां योजना बनाती हैं, समस्या सुलझाती हैं, और संस्कृति भी रखती हैं (क्योंकि अलग-अलग समूहों में अलग-अलग टूल्स यूज होते हैं)। ये खोज 1964 में नेशनल ज्योग्राफिक डॉक्यूमेंट्री ‘मिस गुडॉल एंड द वाइल्ड चिंपैंजी’ में दिखाई गई, जिसने दुनिया को हिला दिया।
वैज्ञानिकों को अपनी किताबें और सोच बदलनी पड़ीं! जेन ने कहा, “ये मेरी आंखें खोलने वाली बात थी – जानवर जितने स्मार्ट हैं, उतने ही हमसे करीब।” इस खोज ने मानव विकास की समझ को नया आयाम दिया, और आज भी चिंपैंजी संरक्षण के लिए इसका उदाहरण दिया जाता है। जेन के 60 साल के अध्ययन से पता चला कि 40+ तरह के टूल्स यूज करते हैं चिंपैंजियां, जैसे पत्थरों से मधु निकालना या छाल से पानी सोखना।
जेन की वैश्विक मान्यता
जेन ने चिंपैंजियों को ‘व्यक्ति’ बनाया, मानव-जानवर के बीच संबंध दिखाया। उनके डीएनए में हमसे सिर्फ 1% अंतर! संयुक्त राष्ट्र की शांति दूत (2002), पर्यावरण की वैश्विक आवाज। इंस्टीट्यूट ने हजारों चिंपैंजियों बचाए। 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति पदक ऑफ फ्रीडम मिला – उनकी आखिरी बड़ी उपलब्धि। वे कहतीं, “आशा है, अगर हम कोशिश करें।” उनकी शोध ने विज्ञान और वैज्ञानिक दोनों को फिरसे सोचने को मजबूर किया है।
जेन का व्यक्तिगत जीवन- पति और बच्चे
जेन की जिंदगी रोमांचक और रोमांटिक भी थी। 1964 में फोटोग्राफर ह्यूगो वैन लॉविक से शादी की, जो नेशनल ज्योग्राफिक के लिए काम करते थे। 1967 में बेटा ग्रब (ह्यूगो एरिक लुईस) पैदा हुआ, गोम्बे में ललन-पालन हुआ। उन्होंने 1974 में पति से तलाक ले लिया, लेकिन दोस्त बने रहे। 1975 में तंजानिया के डेरेक ब्रायसन से दूसरी शादी की, उन्होंने जेन को बहुत सपोर्ट किया। 1980 में डेरेक का कैंसर से निधन हो गया। जेन ने इसके बाद का जीवन अपने बच्चों के साथ ही गुजरा। परिवार में बेटा, तीन पोते, बहन जूडी, मां वान्ने थी।
परिवार तालिका
सदस्य | संबंध | विवरण |
---|---|---|
मॉर्टिमर मॉरिस-गुडॉल | पिता | इंजीनियर, WWII वेटरन |
वान्ने जोसेफ | मां | लेखिका, जेन का बड़ा सहारा |
जूडी गुडॉल | छोटी बहन | परिवार का हिस्सा |
ह्यूगो वैन लॉविक | पहला पति | फोटोग्राफर, 1964-1974 |
ह्यूगो एरिक लुईस (ग्रब) | बेटा | 1967 जन्म, पर्यावरण कार्यकर्ता |
डेरेक ब्रायसन | दूसरा पति | तंजानिया अधिकारी, 1975-1980 |
– | पोते/पोतियां | तीन, जेन की खुशी |
जेन के पुरस्कार और सम्मान
जेन को 100+ पुरस्कार मिले। 2003 में डेम बनीं। 2025 का राष्ट्रपति पदक उनकी अंतिम उपहार रहा
वर्ष | पुरस्कार/सम्मान | कारण/संस्था |
---|---|---|
1974 | गोल्ड मेडल ऑफ कंजर्वेशन | सैन डिएगो जूलॉजिकल सोसाइटी |
1980 | लेगियन डी’ओनर | फ्रांस |
1987 | श्वाइत्जर मेडल | एनिमल वेलफेयर |
1988 | सेंटेनियल अवॉर्ड | नेशनल ज्योग्राफिक |
1990 | क्योटो प्राइज | जापान |
1996 | इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड | कम्युनिटी ऑफ क्राइस्ट |
2002 | यूएन मैसेंजर ऑफ पीस | संयुक्त राष्ट्र |
2003 | डेम कमांडर (DBE) | ब्रिटेन |
2004 | विलियम प्रॉक्टर प्राइज | अमेरिकन फिलॉसॉफिकल सोसाइटी |
2017 | फ्रेंड ऑफ द फॉरेस्ट अवॉर्ड | वुड्स होल रिसर्च सेंटर |
2021 | टेम्पलटन प्राइज | आध्यात्मिक एकता |
2022 | स्टीफन हॉकिंग मेडल | साइंस कम्युनिकेशन |
2025 | प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम | अमेरिका (आखिरी सम्मान) |
निष्कर्ष और विरासत
डेम जेन गुडॉल दुनिया से भले चली गईं, लेकिन उनका संदेश – “हर व्यक्ति बदलाव ला सकता है” – हमेशा गूंजता रहेगा। जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट उनके काम को निरंतर जारी रखेगा। जेन का जीवन हमें सिखाता है कि जानवरों में भी इंसानों जैसी भावनाएं और समझ होती है। पर्यावरण संरक्षण के लिए स्थानोय लोगों की मदद लेनी चाहिए जैसा जेन ने किया। भारत जैसे देशों में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सेलेब्रिटियों को चुना जाता है जबकि उनकी समझ शून्य होती है।
(स्रोत: जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट, न्यूयॉर्क टाइम्स, बीबीसी, साइंटिफिक वर्ल्ड और अन्य ताजा रिपोर्ट्स से।)