World AIDS Day: आज 1 दिसंबर है, और इस दिन को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि एड्स (AIDS) जैसी महामारी से लड़ना कितना महत्वपूर्ण है। 1980 के दशक में जब एचआईवी (HIV) वायरस की पहचान हुई, तो यह एक मौत का पैगाम था। लेकिन आज, 42 साल बाद, यह एक लंबे समय तक चलने वाली बीमारी बन गई है, जिसे दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन फिर भी, इसका पूरा इलाज संभव क्यों नहीं हो पा रहा?
इस लेख में हम समझेंगे कि एचआईवी इतना खतरनाक क्यों है, साथ ही अतिरिक्त जानकारी देकर इसे और उपयोगी बनाएंगे—जैसे वैश्विक आंकड़े, रोकथाम के तरीके, भारत की स्थिति और भविष्य की उम्मीदें। इससे आपको न सिर्फ समझ आएगी, बल्कि जागरूकता भी बढ़ेगी।

World AIDS Day: एचआईवी की शुरुआत किस देश से हुई?
साल 1983 में, फ्रांस के वायरोलॉजिस्ट फ्रांस्वा बार्रे-सिनौसी और ल्यूक मोंटेनियर ने पेरिस के इंस्टीट्यूट पास्चर में एक मरीज के रक्त से एक रेट्रोवायरस अलग किया। यह खोज साइंस पत्रिका में 20 मई 1983 को प्रकाशित हुई (संदर्भ: साइंस जर्नल)। उस समय किसी को पता नहीं था कि यह वायरस कितना घातक साबित होगा।
एचआईवी इंसानी इतिहास का सबसे विनाशकारी रोगाणुओं में से एक है। बिना इलाज के यह इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है, जिससे मरीज को सामान्य संक्रमण भी घातक हो जाते हैं। अनुमानित रूप से, दुनिया भर में 9.14 करोड़ लोग अब तक एचआईवी से संक्रमित हो चुके हैं (विश्व स्वास्थ्य संगठन – WHO डेटा, 2024)।
अतिरिक्त जानकारी: आज एचआईवी का मुख्य प्रसार असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सुइयों का साझा उपयोग (ड्रग्स इंजेक्शन के लिए) और मां से बच्चे को प्रसव के दौरान होता है। अच्छी बात यह है कि जागरूकता बढ़ने से नए संक्रमण कम हो रहे हैं—2023 में 13 लाख नए मामले दर्ज हुए, जो 2010 के मुकाबले 39% कम हैं (UNAIDS रिपोर्ट)।
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एचआईवी का इलाज इतना कठिन क्यों है?
एचआईवी कोई साधारण वायरस नहीं है। यह एक रेट्रोवायरस है, जो अपनी आरएनए (RNA) जेनेटिक सामग्री को डीएनए (DNA) में बदल देता है और फिर होस्ट सेल (मेजबान कोशिका) के जीनोम में घुस ED जाता है। एक बार अंदर पहुँचने के बाद, यह मानव डीएनए का हिस्सा बन जाता है—जैसे आपका अपना जीन! इसका मतलब, वायरस को मारने के लिए हर संक्रमित कोशिका को नष्ट करना पड़ेगा, जो व्यावहारिक रूप से असंभव है।
सबसे बड़ी समस्या है वायरल लेटेंसी (viral latency)। संक्रमण के बाद, वायरस “सो” जाता है—यानी संक्रमित कोशिकाएँ वायरस बनाना बंद कर देती हैं, लेकिन वायरल डीएनए कोशिका के अंदर छिपा रहता है। ये कोशिकाएँ इम्यून सिस्टम की नजर से ओझल हो जाती हैं। एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) दवाएँ नए संक्रमण रोकती हैं, लेकिन इन छिपे हुए “रिजर्वॉयर” (भंडार) को जगा नहीं सकतीं। अगर दवा बंद करें, तो ये कोशिकाएँ फिर सक्रिय हो जाती हैं और वायरस तेजी से फैलने लगता है—इसे वायरल रिबाउंड कहते हैं।
एचआईवी की अनोखी ताकत:
- जीनोम में एकीकरण (Integration): अन्य वायरस जैसे हर्पीस या एपस्टीन-बार वायरस भी लेटेंट रहते हैं, लेकिन एचआईवी की तरह जीनोम में पूरी तरह घुल-मिल नहीं जाते।
- तेज म्यूटेशन (Mutation): एचआईवी का जेनेटिक कोड बहुत तेज बदलता है (आरएनए वायरस की खासियत, जैसे इन्फ्लुएंजा या हेपेटाइटिस सी)। इससे यह “मूविंग टारगेट” बन जाता है—इम्यून सिस्टम थक जाता है।
- इम्यून एग्जॉर्शन: समय के साथ, शरीर की प्रतिरक्षा कमजोर हो जाती है, और कोई प्राकृतिक रिकवरी नहीं होती।
विशेषज्ञों की राय: लेख के लेखक, डॉ. अरुण पंचपाकेशन (चेन्नई के वाई.आर. गेटोंडे एड्स रिसर्च सेंटर के असिस्टेंट प्रोफेसर) कहते हैं, “एचआईवी वायरसों का सम्राट है। यह इंसान का हिस्सा बन जाता है।” दुनिया भर के वैज्ञानिक इसे “मानवजाति का सबसे कठिन रोगाणु” मानते हैं।
अतिरिक्त जानकारी: केवल 7 लोग ही एचआईवी से पूर्ण रेमिशन (remission) में हैं (WHO, जुलाई 2024)—सभी कैंसर के इलाज के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट से। यह तरीका जोखिम भरा और महंगा है, आम लोगों के लिए नहीं। वैक्सीन ट्रायल्स 30+ साल से फेल हो रहे हैं क्योंकि वायरस की विविधता के कारण एंटीबॉडीज स्थायी नहीं बन पातीं।
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वर्तमान इलाज: ART—जीवन रक्षक, लेकिन स्थायी नहीं
आज ART दवाएँ चमत्कार करती हैं। ये वायरल लोड को “अनडिटेक्टेबल” (undetectable) स्तर पर ला देती हैं, जिससे संक्रमण फैलना लगभग असंभव हो जाता है—”U=U” (Undetectable = Untransmittable) सिद्धांत। लेकिन:
- जीवनभर दवाएँ: रोजाना सख्ती से लेनी पड़ती हैं, वरना रेजिस्टेंस (प्रतिरोध) हो जाता है।
- साइड इफेक्ट्स: किडनी, हड्डी और हृदय पर असर, वजन बढ़ना या थकान।
- नई उम्मीदें: गिलेाड की टू-ईयरली इंजेक्शन (दो बार साल में) रोकथाम के लिए मंजूर हुई है (FDA, 2024), लेकिन इलाज नहीं।
अतिरिक्त जानकारी: भारत में 25 लाख से ज्यादा लोग एचआईवी से प्रभावित हैं (NACO, 2024), लेकिन 70% ART पर हैं। मुफ्त ART केंद्रों पर उपलब्ध है। प्री-एक्सपोजर प्रोफिलेक्सिस (PrEP) गोलियाँ हाई-रिस्क लोगों के लिए सुरक्षित हैं।
वैश्विक प्रयास और भारत की भूमिका
WHO और UNAIDS के प्रयासों से संक्रमण दर गिर रही है। शिक्षा, टेस्टिंग और ART विस्तार से 2023 में 3 करोड़ लोग इलाज पर हैं। लेकिन 39 लाख बच्चे अनाथ हो चुके हैं एड्स से।
भारत में: राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) मुफ्त टेस्टिंग और काउंसलिंग देता है। ICMR वैक्सीन रिसर्च कर रहा है। रोकथाम के लिए: कंडोम उपयोग, सुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूजन और मां-बच्चा रोकथाम प्रोग्राम (PMTCT) से 90% बच्चे बचाए जा सकते हैं।
रोकथाम के सरल टिप्स (अतिरिक्त मूल्य):
- यौन स्वास्थ्य: हमेशा कंडोम इस्तेमाल करें। PrEP लें अगर रिस्क ज्यादा।
- सुई साझा न करें: ड्रग्स से दूर रहें, टैटू/पियर्सिंग के लिए नई सुई।
- टेस्टिंग: सालाना चेकअप, खासकर 15-49 उम्र वालों के लिए। घर पर किट उपलब्ध।
- जागरूकता: एचआईवी कलंक (stigma) कम करें—यह कोई नैतिक दोष नहीं, बल्कि स्वास्थ्य समस्या है।
भविष्य की उम्मीदें: इलाज नहीं, तो नियंत्रण?
पूर्ण इलाज अभी दूर है, लेकिन वैज्ञानिक “किक एंड किल” (जगाना और मारना) स्ट्रैटेजी पर काम कर रहे हैं—लेटेंट वायरस जगाकर ART से मारना। जीन एडिटिंग (CRISPR) और mRNA वैक्सीन (कोविड जैसी) ट्रायल्स चल रहे हैं। लेख कहता है, “एचआईवी को हराना दवा से नहीं, बल्कि जागरूकता और रोकथाम से संभव है।”
अंतिम संदेश: एचआईवी से डरें नहीं, जागरूक रहें। टेस्ट करवाएँ, सुरक्षित रहें। विश्व एड्स दिवस पर संकल्प लें—कोई अकेला न रहे। अधिक जानकारी के लिए NACO हेल्पलाइन (1097) या WHO वेबसाइट देखें। अगर आपके पास कोई सवाल है, तो पूछें!
(स्रोत: यह लेख मूल द हिंदू आर्टिकल पर आधारित है, अतिरिक्त डेटा WHO, UNAIDS और NACO से लिया गया।)








