हिंदी साहित्य के लेखन में वैसे तो बहुत सी लेखिकाओं ने अपने लेखन से सा समाज को प्रभवित किया है। लेकिन मैत्रैयी पुष्पा का नाम ऐसे उपन्यासकार के रूप में लिया जाता है जिन्होंने अपने लेखन में काल्पनिक कथा की बजाय स्थानीय परिवेश से जुड़ी वास्तविक घटनाओं को अपने लेखन का विषय बनाया। उन्होंने अपने लेखन में गांव और उसके इर्द-गिर्द होने वाले घटनाक्रम को शब्दों का रूप देकर वास्तविक साहित्य का सृजन किया। इस लेख में हम मैत्रेयी पुष्पा का जीवन परिचय और रचनाऐं | Maitraiyi Pushpa Biography in hindi के माध्यम से उनके जीवन और साहित्य के विषय में चर्चा करेंगे।

मैत्रेयी पुष्पा हिंदी साहित्य में एक ऐसी विद्रोही लेखिका के रूप में पहचानी जाती हैं जिन्होंने अपने साहित्य में सामाजिक और धार्मिक रूढ़िवाद और पुरुषवादी वर्चस्व को अपने लेखन के माध्यम से चुनौती दी है। उनका लेखन न सिर्फ समाज को उसकी वास्तविकता से परिचित कराता है बल्कि भारतीय समाज में रह रहे दबे कुचले वर्गों और स्त्री शोषण की आवाज को भी अपने लेखन के माध्यम से सामने लातीं हैं।
मैत्रयी के लेखन में ब्रज और बुंदेल दोनों संस्कृतियों और भाषा की झलक दिखती है। रांगेय राघव और फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ के समकक्ष मानी जाने वाली मैत्रयी यथार्थवादी लेखिका मानी जाती हैं।
नाम | मैत्रेयी पुष्पा |
पूरा नाम | मैत्रेयी पुष्पा हीरालाल पाण्डेय |
जन्म | 30 नवंबर 1944 |
जन्मस्थान | सिकुर्रा गाँव, अलीगढ़ उत्तर प्रदेश |
पिता | हीरालाल मेवाराम पाण्डेय |
माता | कस्तूरी हीरालाल पाण्डेय |
पति | डॉ रमेश चंद्र शर्मा |
बच्चे | बड़ी बेटी नम्रता, मझली मोहिता तथा सबसे छोटी सुजाता (तीनों बेटी डॉक्टर हैं ) |
शिक्षा | एम.ए (हिंदी साहित्य) |
दादा | मेवाराम पाण्डेय |
पेशा | हिंदी उपन्यासकार कथा लेखक |
लेखन की विधाएँ | कहानी, उपन्यास, आत्मकथा |
चर्चित उपन्यास | इदन्नमम, अल्मा कबूतरी, चाक, कस्तूरी कुंडली बसै, ‘बेतवा बहती रही’ आदि। |
चर्चित कहानियां | गोमा हँसती है, चिन्हार, ललमनियां |
आत्मा कथा | ‘कस्तूरी कुण्डल बसै’ और ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’ |
आयु | 79 वर्ष , 10 माह, और 17 दिन (21 मार्च 2025 के अनुसार) |
जाति | ब्राह्मण |
धर्म | हिन्दू |
नागरिकता | भारतीय |
पुरस्कार और सम्मान | प्रेमचंद सम्मान’, ‘हिंदी अकादमी साहित्य सम्मान’, ‘सार्क लिटरेरी पुरस्कार’ |
Maitraiyi Pushpa | मैत्रेयी पुष्पा का प्रारम्भिक परिचय
उपन्यासकार और कहानीकार मैत्रेयी पुष्पा का जन्म 30 नवम्बर 1944 में अलीगढ जिले के सिर्कुरा गांव, उत्तर प्रदेश में हुआ था | उनके पिता का नाम हीरालाल पाण्डेय और माता का नाम कस्तूरी पाण्डेय था | एक बेहद गरीब ब्राहमण परिवार में जन्मी मैत्रेयी का बचपन अत्यंत कठिनाइयों में गुजरा | उनके जीवन में उनकी माता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही जिन्होंने अपने पति की अकस्मात मृत्यु के बाद भी अपनी एकलौती पुत्री को पढ़ाया और उसे एक अच्छा जीवन दिया।
जब मैत्रेयी का जन्म हुआ तब उनके पिता ने एक पौराणिक चरित्र मैत्रेयी के नाम पर उनका नाम मैत्रेयी पुष्पा रखा। उनका पूरा नाम विवाह से पहले मैत्रेयी पुष्पा हीरालाल पाण्डेय था। उनका विवाह डॉ रमेश चंद्र शर्मा के साथ हुआ और दम्पत्ति की तीन पुत्रियां हैं जो ऐम्स में डॉक्टर हैं।
मैत्रेयी पुष्पा की शिक्षा (Maitraiyi Pushpa Education)
मैत्रेयी पुष्पा की प्राथमिक शिक्षा उनके पैतृक गांव सिकुर्रा, अलीगढ में ही हुई थी। मात्र डेढ़ साल की थी मैत्रेयी जब उनके पिता की मृत्यु हो गई, ऐसे में उनकी माता ने उनकी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया। अपनी पढ़ाई के प्रांरभिक संयम में मैत्रेयी का मन पढाई में बिलकुल नहीं लगता था। उन्होंने 13 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर उन्होंने ‘डी.बी इंटर कॉलेज’ ,मेरठ से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।
इसके बाद मैत्रेयी ने बुंदेलखंड कॉलेज से दर्शन शास्त्र’ और ‘मनोविज्ञान’ में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से हिंदी साहित्य से एम.ए. की डिग्री हासिल की।
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मैत्रेयी पुष्पा का वैवाहिक जीवन
मैत्रेयी पुष्पा का विवाह एक ऐसी कहानी है जिसे स्वयं उन्होंने अपने आत्मकथात्मक उपन्यास “कस्तूरी कुण्डल बसै” में लिखा है। अपनी पढाई के दौरान उन्हें कई बार अपने शिक्षकों द्वारा ही शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ा। इस शोषण से बचने का मैत्रेयी पुष्पा को एक उपाय सूझा विवाह। उन्होंने स्नातक की पढाई के दौरान अपनी माता से विवाह की इच्छा जाहिर की जो उनकी माता के लिए किसी बज्रपात से काम नहीं था। क्योंकि उनकी माता कस्तूरी उन्हें उच्च शिक्षा दिलाकर कामयाब करना चाहती थी।
बेटी की जिद के आगे माता को झुकना पड़ा और अलीगढ़ के ‘डॉ. रमेशचंद्र शर्मा’ के साथ उनका विवाह हुआ। विवाह के बाद उनकी तीन बेटियां नम्रता, मोहिता और सुजाता पैदा हुई। आज तीनों बेटियां दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में डॉक्टर हैं।
मैत्रेयी पुष्पा का साहित्यिक सफर
मैत्रेयी पुष्पा जब हिंदी साहित्य में एम. ए. कर आरही थीं तभी उनके अंदर लेखन के गुण पनपे। उनके साहित्यिक सफर में संपादक राजेंद्र यादव का बहुत बड़ा योगदान है। जब मैत्रेयी पुष्पा ने अपना पहला कहानी संग्रह लिखा तो उसे प्रकाशित करने को कोई तैयार नहीं था। राजेंद्र यादव ने उनके कहानी संग्रह को 6 बार लौटाया मगर अंत में सातवीं बार में उसे छपने को राजी हो गए इसके बाद मैत्रेयी पुष्पा ने अपने उपन्यास नियमित रूप से प्रकाशित किया।
राजेंद्र यादव और मैत्रेयी पुष्पा के बीच जो रिश्ता है उसको लेकर कई बार गलत धारणाएं बनाई गईं हैं। लेकिन मैत्रेयी पुष्पा ने किसी की परवाह नहीं की और वे राजेंद्र यादव को अपना गुरु और पथ प्रधर्षक मानती हैं।
मैत्रेयी पुष्पा का प्रथम उपन्यावर्ष 1990 प्रकाशित हुआ जिसका नाम ‘स्मृति दंश’ था। उन्होंने हिंदी गद्य साहित्य की प्रचलित सभी विधाओं में साहित्य का सृजन किया जिनमें कहानी, उपन्यास, आत्मकथा और वैचारिक साहित्य शामिल हैं। मैत्रेयी पुष्पा के लेखन की विशेषता स्थानीय भाषा और बोली के साथ यथार्थवाद पर आधारित घटनाएं हैं, वहीं उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से ग्रामीण लोक जीवन, ग्रामीण लोक संस्कृति, वर्तमान राजनीति व नारी शोषण और उसके जीवन की समस्याओं को अपने साहित्य में स्थान दिया है।
वर्तमान हिंदी कथा साहित्य में मैत्रेयी पुष्पा का स्थान आंचलिक साहित्यकार ‘फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ व रांगेय राघव और कृष्ण सोवती के समकक्ष माना जाता हैं।
मैत्रेयी पुष्पा एक हिंदी कथा लेखक हैं। हिन्दी की एक प्रख्यात लेखिका मैत्रेयी पुष्पा के नाम दस उपन्यास और सात लघु कहानी संग्रह हैं। वह एक लेखक के रूप में अपने चाक,अल्मा कबूतरी, झूला नट और एक आत्मकथात्मक उपन्यास ‘कस्तूरी कुंडल बसे’ के लिए जानी जाती हैं।
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मैत्रेयी पुष्पा की आजीविका
मैत्रेयी पुष्पा ने साप्ताहिक राष्ट्रीय सहारा में एक नियमित कॉलम लिखने के अलावा लघु कथाओं के सात संग्रह और दस उपन्यास लिखे हैं। दिल्ली महिला आयोग ( DWC ) की अध्यक्षा पद के लिए दिल्ली सरकार ने मैत्रेयी पुष्पा के नाम का प्रस्ताव रखा। वर्तमान में वे स्वतंत्र रूप से अपने साहित्य लेखन के कार्य को कर रही हैं।
मैत्रेयी पुष्पा की लेखन शैली
साहित्यिक दृष्टि से देखें तो मैत्रेयी पुष्पा हिंदी की एकमात्र महिला उपन्यासकार हैं, जिन्होंने ग्रामीण भारत के बारे में लिखने सत्य को दर्शाने का साहस किया है, उनका लेखन भारतीय सामंती व्यवस्था के खिलाफ एक निरंतर संघर्ष है जो अभी भी भारतीय गांवों में व्याप्त है। उनके नायक हमेशा नारी की गरिमा को बनाए रखने वाली निडर महिलाएं हैं, जो पुरुष वर्चस्व को झेलती हैं और उसका विरोध करती हैं। इसके आलावा जाति के आधार पर होने वाले शोषण और अत्याचार को भी स्थान दिया है।
हिंदी साहित्य जगत की कोई अन्य महिला लेखिका मैत्रेयी से बेहतर ग्रामीण समाज, राजनीति और वास्तविकता को नहीं समझती और उसका चित्रण करती है। वह बोल्ड और स्पष्टवादी है। वह अपनी शक्तिशाली मुहावरेदार भाषा और बेहिचक लेखन के लिए जानी जाती हैं।
मैत्रेयी पुष्पा के विषय में राजेंद्र यादव ने कहा है कि ” मैत्रेयी पुष्पा ने अपने लेखन में जिस प्रकार गांव, खेतों खलिहानों के खुले वातावरण से अपने साहित्य का सृजन किया है वह शहर की घुटन भरी ज़िंदगी में एक ताजा हवा के झोंके के समान है, उनसे पहले इस तरह का साहसिक साहित्य लेखन देखने को नहीं मिला है । उन्होंने हमारे किताबी शीर्षक और भाषा दोनों को नई परिभाषाएं दी हैं। आजादी के बाद रंगे राघव और फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ के बाद तीसरा नाम मैत्रेयी का होगा जो धूमकेतु की तरह साहित्य के आसमान में फूट पड़ा है।
मैत्रेयी पुष्पा की नेट वर्थ
मैत्रेयी पुष्पा अपने लेखन से लगभग 7 से 9 करोड़ रूपये की आय कर चुकी हैं। उनकी आय का मुख्य साधन उनके लेखन की रॉयल्टी से आता है।
मैत्रेयी पुष्पा का लेखन कार्य
मैत्रेयी पुष्पा ने अपने लेखन कार्य की शुरुआत 1990 में अपने पहले उपन्यास “स्मृति दंश” से की। इसके बाद उन्होंने नियमित रूप से पाठकों के लिए उपन्यास और कहानियों का सृजन किया है। उनके लेखन की विशेषता है मौलिकता। जब उनके उपन्यास और कहानी को पढ़ते हैं तब आप स्वयं भी उस उसमें जुड़ते चले जाते हैं।
मैत्रेयी पुष्पा का कहानी संग्रह
कहानी का नाम | प्रकाशन का वर्ष |
---|---|
चिन्हार (12 कहानियां) | 1991 |
ललमनियाँ (10 कहानियां) | 1996 |
गोमा हँसती हैं (10 कहानियां) | 1998 |
छांह (12 कहानियां) | |
प्रतिनिधि कहानियां | 2006 |
पियरी का सपना | 2009 |
समग्र कहानियां |
मैत्रेयी पुष्पा के प्रमुख उपन्यास
उपन्यास के नाम | प्रकाशन का वर्ष |
---|---|
स्मृतिदंश | 1990 |
बेतवा बहती रही | 1993 |
इदन्नमम | 1994 |
चाक | 1997 |
झूला नट | 1999 |
अल्मा कबूतरी | 2000 |
अगनपाखी | 2001 |
विजन | 2002 |
कहीं ईसुरी फाग | 2004 |
त्रिय हठ | 2006 |
गुनाह बेगुनाह | 2011 |
फरिश्ते निकले | 2014 |
मैत्रेयी पुष्पा की आत्म कथा (दोभागों में)
नाम | प्रकाशन वर्ष |
---|---|
कस्तूरी कुण्डल बसै | 2002 |
गुड़िया भीतर गुड़िया | 2008 |
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख
लेख का शीर्षक | पत्रिका का नाम | प्रकाशन तिथि |
---|---|---|
कथा साहित्य में सती पूजा | हंस | फरवरी 2006 |
लीक तोड़ने वाले लेखक बदनाम होने के लिए अभिशप्त हैं | हंस | सितम्बर 2005 |
हादसे एक स्त्री का विस्फोटक जीवन | परख (हंस) | फरवरी 2006 |
स्त्री विरोध ने आग पैदा कर दी | समयांतर | जनवरी-फरवरी 2001 |
कथा में जीवन जीवन में कथा | आजकल | अगस्त 2005 |
आधुनिक विमर्श एवं साहित्य की मूल्यवत्ता का प्रश्न | हिन्दी साहित्य सम्मेलन | 6 मार्च 2006 |
साहित्य परिषद की सभापति मैत्रेयी पुष्पा का अभिभाषण | राष्ट्रभाषा | मई 2006 |
छुटकारा (स्वतंत्र कहानी) | हंस | अगस्त 1999 |
नाटक:
- मंदक्रांत 2006
- टेलीफिल्म: “फैसला” कहानी पर आधारित “वसुमती की चिट्ठी”
अन्य रचनाएँ
- संस्मरण : वह सफ़र था कि मुकाम था |
- रिपोर्ताज : फाइटर की डायरी |
- काव्य संग्रह : लकीरें
नारी विमर्श संबंधी लेखन
नाम | प्रकाशन वर्ष |
---|---|
खुली खिड़कियाँ | 2003 |
सुनो मालिक सुनो | 2006 |
चर्चा हमारा | 2009 |
तब्दील निगाहें | 2012 |
आवाज | 2012 |
पुरस्कार और सम्मान
पुरस्कार और वर्ष | पुरस्कार |
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2001 | सार्क साहित्य पुरस्कार |
2003 | हंगर प्रोजेक्ट द्वारा सरोजिनी नायडू पुरस्कार |
2012 | महात्मा गांधी सम्मान |
1996 | प्रेमचंद सम्मान (इदन्नमम उपन्यास के लिए) |
1995 | उत्तर प्रदेश साहित्य संस्थान द्वारा प्रेमचंद सम्मान |
2011 | आगरा विश्वविद्यालय गौरव श्री पुरस्कार |
2011 | वनमाली सम्मान |
2009 | सुधा स्मृति सम्मान |
2006 | मंगला प्रसाद परितोषक |
2000 | कथकराम सम्मान (इदन्नाम्मम के लिए) |
1998 | हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा साहित्यकार सम्मान |
1996 | वीर सिंह जू देव पुरस्कार (इदन्नाम्मम के लिए) |
1995 | नंजनगुड्डु तिरुमलम्बा पुरस्कार (इदन्नाम्मम के लिए) |
1993 | कथा पुरस्कार (“फैसला” कहानी के लिए) |
1991 | हिंदी अकादमी द्वारा साहित्य कृति सम्मान |
मैत्रेयी पुष्पा के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न- FAQs
Q. मैत्रेयी पुष्पा का जन्मस्थान क्या है ?
Ans– मैत्रेयी का जन्म 30 नवंबर 1944 को अलीगढ जिले के सिकुर्रा गांव में हुआ था।
Q. मैत्रेयी पुष्पा के माता-पिता कौन थे ?
Ans – मैत्रयी की माता-पिता ‘कस्तूरी’ और ‘हीरालाल’ थे।
Q. मैत्रेयी पुष्पा का प्रथम उपन्यास कौनसा है?
ns –‘स्मृति दंश’ उनका प्रथम उपन्यास है जो वर्ष 1990 में प्रकाशित हुआ था।
Q- मैत्रेयी पुष्पा के पति कौन हैं?
Ans – डॉ. रमेशचंद्र शर्मा मैत्रयी जी के पति हैं जो पेशे से डॉक्टर हैं।
Q. मैत्रेयी पुष्पा की कितनी संतान हैं?
Ans. मैत्रेयी पुष्पा की तीन बेटियां नम्रता, मोहिता और सुजाता हैं जो तीनों ही डॉक्टर हैं।
Q. मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा का क्या नाम है?
Ans. मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी आत्मकथा दो भाग में लिखी है- कस्तूरी कुण्डल बसै 2002 और गुड़िया भीतर गुड़िया 2008 है।
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