SavitriBai Phule की जयंती सम्पूर्ण भारत में 3 जनवरी को मनाई जाती है। सावित्रीबाई फुले प्रसिद्ध समाज सुधारक ज्योतिराव फुले की पत्नी थीं। अपने पति के संघर्ष और प्रेरणा से सावित्रीबाई फुले ने भारत में लड़कियों के लिए प्रथम स्कूल खोला और वे भारत की प्रथम महिला शिक्षिका भी हैं। SavitriBai Phule Jayanti पर हम उनके बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां आपके साथ साझा कर रहे हैं।
उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनकी पहचान सिर्फ शिक्षिका के रूप में ही नहीं है बल्कि वे एक कवयित्री और दार्शनिक भी थी।

SavitriBai Phule Jayanti – जीवन परिचय
सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के गांव नैगांव (ब्रिटिश शासित बॉम्बे प्रेसीडेन्सी ) में 3 जनवरी 1931 को हुआ था। उनका गांव पुणे से लगभग 50 किलोमीटर दूर था। उनका जन्म माली समुदाय में हुआ और उनके पिता खन्दोजी नेवसे पाटिल और माता लक्ष्मीबाई थी। सावित्री अपने माता-पिता की चार संतानों में सबसे छोटी थीं। उनके माता-पिता ने सावित्री का विवाह 1840 में मात्र 10 वर्ष की आयु में ज्योतिराव फुले के साथ कर दिया। उस समय ज्योतिराव फुले की आयु 13 वर्ष थी।
नाम | सावित्रीबाई फुले |
जन्म | 3 जनवरी 1931 |
जन्मस्थान | सतारा जिले के गांव नायगांव ( ब्रिटिश भारत अब सतारा, महाराष्ट्र ) |
पिता | नेवसे पाटिल |
माता | लक्ष्मीबाई |
शिक्षा | स्नातक और शिक्षक प्रशिक्षण |
पेशा | शिक्षिका और समाज सुधारक |
पति | ज्योतिराव फुले |
संतान | यशवंत (दत्तक पुत्र) |
लेखन कार्य | बावनकाशी सुबोध रत्नाकर |
मृत्यु | 10 मार्च 1897 (66 वर्ष की आयु) |
मृत्यु का स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
मृत्यु का कारण | बुबोनिक प्लेग |
जन्मदिवस | 3 जनवरी |
प्रसिद्ध | बालिका और महिला शिक्षा के लिए संघर्ष |
संस्था | सत्यशोधक समाज |
SavitriBai Phule Jayanti: सावित्रीबाई फुले की शिक्षा
आपको जानकर हैरानी होगी कि एक ऐसी महिला जो विवाह के समय 9 या 10 साल की थी और उस समय वह अनपढ़ थी। उनकी शिक्षा में उनके पति ज्योतिराव फुले और उनकी चचेरी बहन सगुनबाई शिरसागर जो खेतों में काम करती थी, ने बहुत योगदान दिया। अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ प्रांरम्भिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद सावित्री बाई फुले ने अपने मित्रों सखाराम यशवंत परांजपे और केशव शिवराम भवालकर के सानिध्य में शिक्षा जारी रखी।
इसके बाद सावित्रीबाई फुले ने दो शिक्षक ट्रैनिंग में प्रवेश लिया जिसमें एक अहमदनगर में था और उसका सञ्चालन अमेरिकी ईसाई मिसनरी कैंथीआ फर्रार करती थी। दूसरा कोर्स उन्होंने पुणे के नार्मल स्कूल से किया।
अपनी ट्रेनिंग पूर्ण करने के बाद सावित्रीबाई भारत की प्रथम महिला शिक्षिका और प्रधान शिक्षिका बनीं।
सावित्रीबाई फुले से जुड़े तथ्य एक नज़र में
- हमें और आपको यह विश्वास करना बाकई मुश्किल है कि 190 साल पहले कोई महिला इतने साहस और गरिमा के साथ इस रूढ़िवादी और जातिवादी देश की धरती पर रहती थी। आइए जानते हैं उनसे जुड़े तथ्य एक नज़र में —
- 1- उनका जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ।
- 2- 1840 में ज्योतिबा फुले के साथ विवाह हुआ।
- 3- 1 मई 1847 में शगुनबाई के सहयोग से बालिकाओं के लिए पहला स्कूल खोला। 6 – 7 बालिकाओं से शुरू हुआ यह स्कूल 40 बालिकाओं तक पहुँच गया।
- 4- 1 जनवरी 1848 को पुणे शहर के भीड़ेवाड़ी में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला। समाज के तथाकथित उच्च वर्ग के लोग सावित्रीबाई के ऊपर गोबर, कूड़ा, पत्थर फेंकते और भद्दी-भद्दी गालियां देते।
- 5- फातिमा शेख को पढ़ने की प्रेरणा दी और फातिमा 19वीं सदी की पहली मुस्लिम शिक्षिका बनीं।
- आधुनिक भारत की पहली विद्रोही कवयित्री हैं उनका पहला कविता संग्रह ‘काव्य फुले’ 1854 में प्रकाशित हुआ तब वे महज 23 साल की थीं।
- 1891 में दूसरा काव्य संग्रह ‘बावनकशी सुवोध रत्नाकर’ प्रकाशित हुआ।
- 16 नवम्बर 1852 को ब्रिटिश सरकार ने उनके शिक्षा में योगदान के लिए सम्मानित किया।
- 28 जनवरी 1853 को ‘बाल हत्या प्रतिबन्धक गृह’ की स्थापना की।
- उस्मान शेख के घर में प्रसूति गृह की स्थापना की।
- काशीबाई नामक गर्भवती ब्राह्मण महिला को मरने से बचाया और उसके पुत्र को गोद लेकर अपना नाम दिया।
- 1893 में सत्यशोधक समाज की अध्यक्षता की।
- 10 मार्च 1998 को भारत सरकार ने सावित्रीबाई फुले की स्मृति में डाक टिकिट जारी किया।
- 2015 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम सावित्रीबाई फुले के नाम पर किया गया।
- 10 मार्च 1897 को प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए उनका देहांत हो गया।
चुनौतियों को पार कर बनीं गुलाम भारत की पहली महिला शिक्षिका
सावित्रीबाई फुले का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ। जैसा की प्राचीन काल से चला आ रहा था कि दलितों को शिक्षा प्राप्त करना धर्म और समाज विरुद्ध माना जाता था और महिलाओं के लिए तो शिक्षा के द्वार बिलकुल बंद थे। अपने विवाह के समय मात्र 9 साल की सावित्री बिलकुल अनपढ़ थी मगर अपने पति की प्रेरणा और सहयोग से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने चुनौतियों के सामने अडिग साहस दिखाया और स्नातक की शिक्षा प्राप्त करके गुलाम भारत की प्रथम शिक्षिका बनीं।
सावित्रीबाई फुले का शिक्षा और सामाजिक योगदान
सावित्रीबाई फुले ने पुणे में लड़कियों को पढ़ना शुरू किया, इमके इस कार्य में ज्योतिराव फुले की चचेरी बहन बहन सगुणाबाई शिरसागर ने मदद की। सगुणाबाई शिरसागर एक क्रांतिकारी महिला था और नारीवाद के विषय में वे ज्योतिबाराव की गुरु थी। इसके बाद सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने सगुणाबाई के सहयोग और प्रेरणा से भिड़ेवाड़ा में अपना स्वयं का कन्या स्कूल खोला।
भिड़ेवाड़ा तात्या साहेब भिड़े का जनस्थान था और वे उनके कार्य से बहुत प्रेरित हुए। इस स्कूल में गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन का पारंपरिक पश्चिमी पाठ्यक्रम के आधार पर अध्ययन कराया जाता था।
सावित्रीबाई फुले के स्कूल में पढ़ती थीं सरकारी स्कूल के लड़कों से ज्यादा लड़कियां
यह आश्चर्यजनक है कि सावित्रीबाई फुले द्वारा स्थापित स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले लड़कों से ज्यादा थी। उनके स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या 150 से अधिक थी। इसका कारण यह था की सावित्रीबाई के स्कूल में सरकारी स्कूल से अलग रोचक और प्रभावशाली पद्धति द्वारा पढाई होती थी।
1851 तक सावित्रीबाई फुले और ज्योतिवाराव फुले ने पुणे में लड़कियों के लिए अलग – अलग तीन स्कूल खोले। कुल 18 स्कूलों की स्थापना की।
कथाकार दिव्या कंदुकुरी के विचार में फुले की पद्धतियाँ सरकारी स्कूलों द्वारा प्रयोग की जाने वाली पद्धतियों के मुकाबले कहीं अधिक रोचक और प्रभावशाली थीं।
जब रूढ़िवादी लोग फेंकते थे सावित्रीबाई पर गोबर-कीचड़
सावित्रीबाई फुले का प्रगतिशील होना और लड़कियों को शिक्षित करना समाज के रूढ़िवादियों को बिलकुल पसंद नहीं था। उन्हें स्थानीय लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। जब सावित्रीबाई स्कूल जाती थीं तो अपने साथ एक अतिरिक्त साडी लेकर चलती थीं क्योंकि स्थानीय लोग उनके ऊपर पत्थर, गोबर, कीचड़ फेंकते थे और भद्दी-भद्दी गलियां देते थे। मगर सावित्रीबाई ने बिना विचलित हुए अपना काम जारी रखा।
फुले दंपत्ति को छोड़ना पड़ा अपना घर
रूढ़िवादी लोग सिर्फ समाज में ही नहीं थे बल्कि फुले के घर वाले खुद उनके काम से खुश नहीं थे। क्योंकि मनुस्मृति और उसके प्रेरक ब्राह्मण ग्रंथों में स्त्री शिक्षा और अधिकार का निषेध है। 1839 में फुले दंपत्ति को अपना घर छोड़ना पड़ा।
एक मुस्लमान ने दिया फुले दंपत्ति को आश्रय
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले ने जब अपना घर छोड़ा तो किसी भी हिन्दू ने उनको किराये पर घर नहीं दिया, ऐसे में ज्योतिराव के मुस्लिम मित्र उस्मान शेख ने उन्हें आश्रय दिया। फातिमा शेख उस्मान की बहन थी और शिक्षित महिला थी। सावित्री और फातिमा ने उच्च शिक्षक-प्रशिक्षण एकसाथ पूर्ण किया।
इस तरह भारत की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख बनीं। यहीं पर फातिमा, सावित्रीबाई ने 1849 में शेख के घर में प्रथम स्कूल खोला।
सावित्रीबाई फुले के 186 वें जन्मदिवस पर 2017 गूगल ने डूडल बनाकर सम्मान दिया

कई शैक्षिक ट्रस्टों की स्थापना की
सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने कई शैक्षिक ट्रस्टों की स्थापना की। 1850 के दशक में फुले दम्पत्ति ने दो शैक्षणिक ट्रस्टों की नींव रखी-नेटिव मेल स्कूल, पुणे और सोसाइटी फॉर प्रमोटिंग द एजुकेशन ऑफ महार, मांग्स के नाम से जाने गए। इन दोनों ट्रस्टों के माध्यम से कई स्कूल इसमें सम्मिलित किये गए, जिनका सञ्चालन सावित्रीबाई फुले के बाद फातिमा शेख ने संभाला।

जातिबंधन तोड़ सभी जातियों के बच्चों को पढ़ाया
फुले दम्पत्ति ने बिना किसी भेदभाव के सभी जातियों के बच्चों को पढ़ाया। उन्होंने कुल 18 विद्यालयों की स्थापना की। इसके अतिरक्त उन्होंने विधवाओं के गर्भवती होने के बाद पैदा होने वाले शिशु की हत्या रोकने के लिए “बाल हत्या प्रतिबंधक गृह” की भी स्थापना की। उन्होंने विधवाओं के बच्चों का संरक्षण और शिक्षा में मदद की। इस संरक्षण गृह में कोई भी महिला अपने बच्चे को छोड़ सकती थी।
ज्योतिराव का मानना था कि-
“एक शिक्षित माता ही अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे सकती है। यदि लोग वास्तव में देश की प्रगति चाहते हैं और देश में खुशहाली चाहते हैं तो उन्हें महिलाओं की प्रगति और शिक्षा पर धयान देना चाहिए। मैंने इस कार्य को पूर्ण करने के लिए सबसे पहले महिला शिक्षा के लिए स्कूल खोला, मगर मेरे परिवार और समाज को यहाँ पसंद नहीं आया और हमें घर से निकाल दिया गया।
कोई भी हमें जगह देने के लिए तैयार नहीं था और न हमारे पास पैसे थे। लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं थे विशेषकर लड़कियों को। इसके बाबजूद दो महारो लहूजी राघ राउत मांग और रणबा महार ने अपनी जाति के लोगों को शिक्षा का महत्व समझाया।”
“15 सितंबर 1853 को ईसाई मिशनरी पत्रिका ज्ञानोदय को दिए गए साक्षात्कार का अंश”
सावित्रीबाई फुले का लेखन कार्य
सावित्रीबाई फुले सिर्फ एक समाजसुधारक और शिक्षाविद ही नहीं थी बल्कि एक दार्शनिक, लेखक और कवयित्री भी थीं। जिसमें प्रमुख रूप से उनके द्वारा लिखित पुस्तकें प्रमुख हैं —
1854 में प्रकशित ‘काव्य फुले‘ और
1892 में प्रकशित ‘बावन काशी सुबोध रत्नाकर‘
कविता– “जाओ, शिक्षा प्राप्त करो”
सामाजिक आंदोलनों में लिया सक्रीय भाग
सावित्रीबाई फुले सिर्फ एक शिक्षिका या कवयित्री ही नहीं थी, वे एक सक्रीय सामाजिक कार्यकर्ता भी थी। उनके पति पहले ही कई सामाजिक आंदोलनों में भाग ले चुके थे और सावित्रीबाई ने भी अपने पति के साथ सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा का विरोध किया। विधवा होने पर स्त्री का मुंडन करना उस समय की एक आम प्रथा थी मगर सावित्रीबाई ने इसका खुलकर विरोध किया और इसके विरुद्ध आंदोलन चलाया।
रूढ़िवादियों को सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले के ये आंदोलन बिलकुल पसंद नहीं थे। इसके अतरिक्त उन्होंने कई सामाजिक कार्यों में रचनात्मक भूमिका निभाई।
महिला सेवा मंडल की स्थापना
महिला आश्रय गृह की स्थापना — ब्राह्मण विधवाओं को बच्चों को जन्म देने के लिए आश्रय।
अपने इन लेखन और सामाजिक कार्यों से सावित्रीबाई फुले ने ऐसे लोगों को प्रेरित किया जो शिक्षा के माध्यम से अपना जीवन बदलना चाहते थे। इसके बाद सावित्रीबाई फुले नारीवाद का प्रतीक बन गईं। सावित्रीबाई ने बाल विवाह के विरुद्ध अभियान चलाया और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।
सावित्रीबाई ने बचाई एक लड़के की जान
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति को बताया कि उन्हें पता चला कि एक उच्चजातीय लड़के को ग्रामीण मारने वाले हैं क्योंकि उसने एक निम्नजातीय लड़की से प्रेम किया है। जब सावित्रीबाई को उस लड़के की हत्या की योजना का पता चला तो वे वहां गईं और लोगों को ब्रिटिश कानून के बारे में बताया तो वे लोग डरकर भाग गए।
सावित्रीबाई फुले का व्यक्तिगत जीवन
सावित्रीबाई फुले का विवाह प्रसिद्ध समाजसुधारक ज्योतिराव फुले के साथ हुआ था। विवाह के समय सावित्री 10 साल की और ज्योतिराव 13 साल के थे। फुले दंपत्ति की कोई संतान नहीं थी। एक विधवा से पैदा हुए पुत्र को गोद लेकर उसका नाम यशवंत रखा और उसे डॉक्टर बनाया। विवाह के लिए किसी भी वयक्ति ने यशवंत को अपनी कन्या देने को तैयार नहीं था क्योंकि वह एक विधवा की संतान था। ऐसे में सावित्रीबाई फुले ने फरवरी 1889 में अपने संगठन के सदस्य डायनोबा सासाने की पुत्री से यशवंत का विवाह कराया।

सावित्रीबाई फुले की मृत्यु-सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि 2025
अपने दत्तक पुत्र यशवंत के साथ मिलकर सावित्रीबाई ने 1897 में नालासोपारा के आसपास के क्षेत्र में फैली तीसरी महामारी ब्यूबोनिक प्लेग से लोगों को बचाने के लिए एक क्लिनिक खोला। पुणे के बाहरी क्षेत्र को प्लेग मुक्त रखने के लिए यह क्लिनिक खोला गया मगर खुद सावित्रीबाई इसकी चपेट में आ गईं जब वे पांडुरंग बाबाजी गायकवाड़ के बेटे को संक्रमण से बचाने का प्रयास कर रहीं थी।
जब सावित्री को पता चला कि मह्दुअ के बहार प्लेग फ़ैल गया है और बाबाजी गायकवाड़ के बेटे को प्लेग हो गया है, सावित्रीबाई फुले वहां गई और उसे अस्पताल ले गईं। सवितीबाई फुले को प्लेग हो गया और वे 10 मार्च 1897 को रात्रि 9:00 बजे इस दुनिया को छोड़कर चली गईं।
इस तरह माता सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि 10 मार्च 2025 को सोमवार के दिन मनाई जाएगी।
सावित्रीबाई फुले के अनमोल विचार
- शिक्षा से ही स्वर्ग का द्वारा खुलता है और मनुष्य स्वंय को पहचान सकता है।
- अगर समाज तुम्हें कमजोर समझता है तो तुम शिक्षा ग्रहण कर खुदको मजबूत करो।
- शिक्षा स्त्रियों का सच्चा आभूषण है जो आत्मसम्मान से जीने का अवसर देती है।
- अज्ञानता को बस में करके उसे नष्ट करदो और ज्ञान का दीपक जलाओ।
- प्राकृतिक रूप से स्त्रियां भी पुरुष के सामान अधिकार लेकर पैदा होती हैं, मगर पुरुष उन्हें खेतों और रसोई में पहुंचा देते हैं।
- पत्थर पर सिंदूर लगाने और तेल चढाने से संतान होती तो महिला – पुरुष विवाह ही क्यों करते।
- महिलाओं को बंधन में रखने से वे शिक्षा से बंचित हो गई और देश अज्ञानता में डूब गया।
- तुम्हारे लिए गाय , बकरी, सांप पूजनीय हैं मगर दलितों को तुम छूने से भी परहेज करते हो।
- पढाई का महत्त्व चौका-बर्तन से कहीं ज्यादा है।
- क्या तुम जागरूक हो?
- ब्राह्मण इस धरती के स्वघोषित ज्ञानी हो गए और देवता की श्रेणी में शामिल हो गए।
सावित्रीबाई फुले के बारे में रोचक तथ्य
- सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ।
- 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले की जयंती सम्पूर्ण भारत में मनाई जाती है।
- सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षक हैं।
- बालिकाओं के लिए प्रथम स्कूल सावित्रीबाई ने खोला।
- सावित्रीबाई भारत की प्रथम प्रधान अध्यापिका हैं।
- विधवाओं की जान बचाने के लिए महिला आश्रय गृह की स्थापना की स्थापना की।
- महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले से विवाह हुआ।
- अपने पति के साथ मिलाकर 1848 में 9 विद्यार्थियों के साथ स्कूल स्थापित किया।
- एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र को गोद लिया जिसका नाम यशवंत रखा।
- दलितों के लिए अलग कुँए खुदवाये क्योंकि उच्च जाति के लोग दलितों को अपने कुँए से पानी नहीं लेने देते थे।
- 1853 में ब्रिटिश सरकार ने शिक्षा में योगदान के लिए फुले दंपत्ति को सम्मानित किया।
- भारत सरकार ने सावित्रीबाई फुले के सम्मान में डाक टिकिट भी जारी किया है।
- सावित्रीबाई फुले की मृत्यु प्लेग के कारण हुई।
निष्कर्ष
इस प्रकार हमने इस ब्लॉग में भारत की महान महिला शिक्षिका और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले के बारे में जाना। वह भारत की प्रथम महिला थीं जिन्होंने बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए सफल प्रयास किया। उन्होंने रूढ़िवादी समाज को टक्कर देते हुए स्कूल खोला और बालिकाओं को शिक्षा प्रदान की। अगर वास्तव में शिक्षक दिवस मनाया जाये तो सावित्रीबाई फुले के जन्म दिवस पर मनाया जाना चाहिए।
सावित्रीबाई फुले के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न -Faq
सावित्रीबाई फुले कौन हैं?
सावित्रीबाई फुले भारत में स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने वाली प्रथम महिला हैं।
सावित्रीबाई फुले की जयंती कब है?
प्रतिवर्ष 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई जाती है और यह वर्ष 2025 में 3 जनवरी, दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी।
भारत की प्रथम महिला शिक्षिका कौन है?
सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका हैं।
लड़कियों के लिए भारत में पहला स्कूल कब और किसने खोला?
सावित्रीबाई फुले, ज्योतिराव फुले और फातिमा शेख ने 1848 में खोला।
भारत की प्रथम मुस्लिम शिक्षिका कौन है?
फातिमा शेख भारत की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका है।
सावित्रीबाई फुले के पुत्र का क्या नाम है?
सावित्रीबाई फुले के कोई संतान नहीं थी और उन्होंने एक पुत्र गोद लिया जिसका नाम यशवंत रखा।
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