Olympe de Gouges जिनका हिंदी में नाम ओलिम्पे डी गौज है। इनका वास्तविक नाम मैरी गौज था। फ्रांसीसी क्रांति 1789 के दौरान क्रांतिकारियों के साथ उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने महिला संगठन बनाये और महिलाओं को क्रांति के लिए प्रेरित किया। वह क्रांतिकारियों में महिला नायिका के रूप में उभरी उसे फ्रांस में प्रथम नारीवादी महिला होने का गौरव प्राप्त है। वे एक लेखक और सामाजिक कार्यकर्त्ता थीं। उसने महिला अधिकारों की बकालत की और दास प्रथा का विरोध किया। महिला दिवस के अवसर ऐसी क्रन्तिकारी महिला Olympe de Gouges के बारे में जानना एक सार्थक कार्य है।

Olympe de Gouges का प्रारम्भिक जीवन
ओलम्प डे गूज का जन्म 7 मई, 1748 को मोंटौबन में (दक्षिण-पश्चिमी फ्रांस के ऑक्सिटेनी क्षेत्र) हुआ। उनके बचपन का नाम मैरी गौज था। उनके पिता स्व-शिक्षित थे और कसाई का कार्य करते थे। ओलम्पे की मां का नाम ऐनी ओलम्पे मौइसेट गौज़ था जो एक एक बुर्जुआ परिवार से संबंधित थी। 17 वर्ष की आयु में उन्होंने 24 अक्टूबर 1765 में लुइस-यवेस ऑब्री से विवाह किया। दो साल बाद ही उनके पति की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अपना नाम मैरी गौज़ से ओलिम्पे डी गौज कर लिया और अपने एकमात्र पुत्र पियरे ऑब्री (29 अगस्त 1766 को, जन्म) के साथ पेरिस चली गई।
आजीवन अविवाहित रहने का फैसला किया
अपने पति की मृत्यु के बाद ओलिम्पे डे गौजेस पेरिस चली गईं और अविवाहित रहने का फैसला किया जबकि उस समय अविवाहित रहने वाली महिला को वेश्या समझा जाता था। उन्होंने विवाह जैसे सामाजिक संस्था को “विश्वास और प्रेम की कब्र” कहा। लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने ल्योन के एक व्यवसायी, धनी जैक्स बिएट्रिक्स डी रोज़िएरेस के साथ संबंध शुरू कर दिए। उन्होंने अपने लेखन और कार्यों में स्वतंत्र रहने के लिए शादी से इंकार कर दिया और अपनी स्वतंत्रता को चुना। क्योंकि वे जब सैलून (मेजबान द्वारा आयोजित लोगों की भीड़) जाती थी, तब वह एक साहित्यकार बनने का सपना देखती थी और नए विचारों में रुचि रखती थी।
पेरिस में रहते समय की गतिविधियां
दास प्रथा के खिलाफ लड़ाई ने उन्हें लेखिका बनने के लिए प्रेरित किया। 1784 में, उसने फ्रांसीसी थिएटर में प्रथम नाटक लिखा, जिसमें दास प्रथा की कठोर निंदा की गई जबकि उस समय फ्रांस में दास प्रथा अपने चरम पर थी, और बहुत से लोग दास प्रथा से बहुत सा धन कमा रहे थे क्योंकि वे दास व्यापार करते थे, जिनमें से कई पेरिस के इलाकों में से भी थे।
उपरोक्त नाटक का शीर्षक ज़मोर और मिर्ज़ा या ब्लैक की गुलामी था, जिसमें एक जोड़े की कहानी बताई गई है जो अपने मालिकों के सत्याचार से बचने के लिए एक रेगिस्तानी द्वीप पर शरण लेते हैं, और जिन्हें दो युवा फ्रांसीसी लोगों द्वारा मदद प्राप्त होती है। अगले वर्ष कॉमेडी फ़्रैन्काइज़ के प्रदर्शनों की सूची में रेजिस्टर्ड यह नाटक, फ्रांस की क्रांति 1789 से पहले वहाँ प्रदर्शित नहीं किया गया, क्योंकि गोरों और अश्वेतों के बीच समानता और भाईचारे की बात को बहुत से लोगों द्वारा अव्यवाहरिक माना जाता था।
फ्रांसीसी क्रांति और ओलिम्पे डे गौजेस
तीन साल बाद ओलिम्पे ने अपनी प्रतिबद्धता को पुनः जाग्रत किया और दास प्रथा की आलोचना की, ब्लैक मेन पर अपने रिफ़्लेक्शन्स को प्रकाशित करके, ‘Society of Friends of Blacks‘ से मिलती रही। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान, उसने दास प्रथा के विरोधियों के पक्ष ‘ले मार्चे डेस नोयर्स’ के लिए नया नाटक लिखकर फिर चर्चा में आ गई।
फ्रांस में महिला अधिकारों के लिए प्रथम महिला अधिकार घोषणा-पत्र तैयार किया
फ्रांसीसी क्रांति के बाद जब नया संविधान लागू हुआ तो उसक संविधान में महिलाओं के लिए वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया और न ही नागरिक अधिकार दिए गए। जबकि क्रांति के दौरान महिलाओं पुरुषों का साथ कंधे से कन्धा मिलकर क्रांति में सक्रीय भूमिका निभाई। इस बात ने ओलिम्पे डे गौजेस को विचलित कर दिया।
स्वतंत्रता, समानता, अभिमान, ज्ञानोदय के आदर्शों से ओतप्रोत ओलिम्पे डे गौजेस ने 1791 में पुरुष और नागरिक के अधिकारों के घोषणा को ओलमपे चुनौती दी, जिसने स्वतंत्रता और समानता के अपने सिद्धांतों को केवल पुरुषों पर लागू किया। ओलिम्पे ने एक नया महिला और नागरिक अधिकार घोषणा – पत्र तैयार कर प्रकशित किया, जिसे अब नारीवाद का प्रथम घोषणा पत्र भी कहा जाता है और जिसका पहला बिंदु घोषणा करता है: “महिला पुरुष के समान स्वतंत्र पैदा होती है और पुरुष के बराबर अधिकारों की अधिकारी है।“
ओलिम्पे डी गौजेस, महिला अधिकारों की घोषणा (सितंबर 1791)
फ्रांस में आतंक का शासन और ओलिम्पे दे गूज की मौत
फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांस में संवैधानिक शासन की स्थापना हुई। 1793 में जैकोबिन दल के नेता मैक्सिमिलियन रोबेस्पिएरे के हाथ में सत्ता आई। उसने अपने शासनकाल में अपने विरोधियों के साथ अत्यंत क्रूर व्यवहार किया जिसके कारण उसके शासन का आतंक का शासन की संज्ञा दी जाती है। फ्रांस में यह शासन 5 सितंबर, 1793 से 27 जुलाई, 1794 तक रहा।
क्रांति के दौरान ओलिम्पे दे गूज विभिन्न बहसों में सक्रीय रूप से भाग लेती थी, वह गिरोंडिन्स का समर्थन करती थी और मैराट और रोबेस्पिएरे के विरोध में पर्चे बांटती थी। गणतंत्र के कमजोर होने के साथ ही आतंक के शासन के दौरान ओलिम्पे को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और 3 नवंबर, 1793 को उन्हें गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। इस प्रकार मैरी-एंटोनेट के बाद गिलोटिन की जाने वाली दूसरी महिला थीं।
फ्रांस में फिरसे लौटी गुलाम बनाने की प्रथा
ओलिम्पे के बेटे पियरे ऑब्री डी गॉजेस को 1802 में नेपोलियन बोनापार्ट द्वारा गुयाना भेजा गया था, जहाँ कॉलोनी के कैप्टन जनरल विक्टर ह्यूजेस थे और वे लगातार ब्लैक लोगों को गुलाम बना रहे थे, जिस प्रथा के विरोध में ओलंप डी गॉजेस ने अपने जीवनकाल में बहुत संघर्ष किया था। पी. ऑब्री डी गॉजेस शीघ्र बीमार हो गया और यह वह भूमि थी जहाँ फिरसे गुलाम बन रहे थे, जहाँ कुछ महीने बाद पी. ऑब्री डी गॉजेस की मृत्यु हो गई।
फ्रांस में आज ओलिम्पे दे गूज को नारीवाद का प्रतीक माना जाता है
रिपब्लिकनों ओलिम्पे गूज को अनदेखा किया गया और इतिहासकारों ने चुप्पी साध ली। लेकिन 1980 के दशक के मध्य में ओलिवियर ब्लैंक द्वारा एक राजनीतिक जीवनी के माध्यम से उन्हें फिर से जीवंत कर दिया गया। आज फ्रांसीसी क्रांति के दौरान महिलाओं की भूमिका में एक प्रमुख क्रांतिकारी के रूप में उन्हें याद किया जाता है, और उनका नाम नियमित रूप से पैंथियन में प्रवेश के लिए उल्लिखित किया जाता है।
ओलम्पे डी गौजेस के नाटकों और उपन्यासों की सूची
पुस्तक/नाटक का नाम | प्रकार | प्रकाशन वर्ष | विषय/विवरण |
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ज़मोर एट मिर्ज़ा (ल’ह्यूरेक्स नौफ़्रेज) | नाटक | 1788 | गुलामी की अमानवीयता और गुलाम व्यक्ति के दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है। |
रिफ्लेक्सियन्स सुर लेस होम्स नेग्रेस | लेख | 1788 | फ्रांसीसी उपनिवेशों में दासों की दुर्दशा और गुलामों के साथ अमानवीय व्यवहार की निंदा की। |
एल’एस्क्लेवेज डेस नोइर्स | नाटक | 1789 | औपनिवेशिक दासता और फ्रांसीसी राजनीतिक उत्पीड़न के बीच समानता पर प्रकाश डाला। |
मेमोइरेस डी मैडम डी वैलमोंट | उपन्यास | 1784 | अपने व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित; पारिवारिक अन्याय और समाज में महिलाओं की दशा पर प्रकाश डाला गया है। |
निष्कर्ष
इस प्रकार ओलिम्पे दे गूज फ्रांस में नारीवाद और महिलाओं के लिए समानता की आवाज उठाने वाली प्रथम महिला बनीं। उनके सिद्धांतों को उनकी मृत्यु के बाद स्वीकार किया गया और फ्रांस में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया गया। वे आज दुनिया में नारीवाद का प्रतीक हैं। उन्होंने गुलामी की निंदा की जिसके कारण उन्हें मौत के घाट उतारा गया। उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। अपने सुझाव हमारे साथ साझा करने के लिए कमेंट वॉक्स में टिप्पणी करें।