भारतीय इतिहास में पहली महिला शासिका होने का गौरव रज़िया सुल्तान को प्राप्त है। लेकिन क्या आप जानते हैं भारत की प्रथम हिन्दू महिला शासिका होने का गौरव किसे प्राप्त है? इस लेख में हम बात कर रहे हैं प्रथम हिन्दू महिला शासिका रानी दुर्गावती (Rani Durgawati) के बारे में जिन्होंने 1550 से 1564 तक महोबा राज्य की रानी के रूप में शासन किया। इस लेख में हम रानी दुर्गावती के इतिहास और उपलब्धियों पर चर्चा करेंगे। लेख को अंत तक अवश्य पढ़े।

| नाम | रानी दुर्गावती |
| जन्म | 5 अक्टूबर 1524 |
| जन्मस्थान | कालिंजर |
| पिता | कीर्तिवर्मन द्वितीय चन्देल |
| पति | दलपत शाह |
| संतान | बीर नारायण |
| शासनकाल | 1550 से 1564 ईस्वी तक |
| मृत्यु | 24 जून 1564 |
Rani Durgawat | रानी दुर्गावती का प्रारम्भिक परिचय
रानी दुर्गावती गढ़ा राज्य की शासक महारानी थीं, जिसने 1550 से 1564 ईस्वी तक शासन किया। उन्हें भारत की प्रथम हिन्दू महिला शासिका होने का गौरव प्राप्त है। उनके पति का नाम दलपत शाह था जो गढ़ा राज्य के शासक थे। दलपत शाह वास्तव में गोंड राजा संग्राम शाह द्वारा गोद लिया गया था। दुर्गावती को मुगलों से अपने राज्य की रक्षा के लिए याद किया जाता है।
रानी दुर्गावती का जन्म और पालन-पोषण
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर के दुर्ग में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराज कीर्तिवर्मन द्वितीय चन्देल था जिन्हें भैरववर्मन या शालिवाहन के नाम से भी जाना जाता था। वह एक राजपूत शासक थे। रानी दुर्गावती का पालन-पोषण और शिक्षा का उचित प्रबंध किया गया था। उन्हें घुड़सवारी और तलवारबाजी का प्रशिक्षण दिया गया।
रानी दुर्गावती का विवाह और संतान
1542 ईस्वी में रानी दुर्गावती का विवाह गढ़ा साम्राज्य के शासक संग्राम सिंह के दत्तक पुत्र दलपत शाह के साथ हुआ। विवाह के 6 साल बाद दलपत शाह की मृत्यु हो गई और अपने पुत्र बीर नारायण जो उस समय नाबालिग था की संरक्षिका के रूप में शासन किया।
रानी दुर्गावती एक शासिका के रूप में
गढ़ा साम्राज्य का विस्तार संग्राम शाह द्वारा किया गया था जिसके अंतर्गत वर्तमान मध्य प्रदेश के मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, भोपाल, सागर और दमोह ज़िलों तथा छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों तक विस्तार था। रणनीतिक रूप से यह राज्य सुरक्षित माना जाता था क्योंकि इस राज्य में 52 किले थे जिन्हें घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बनाया गया था।
रानी दुर्गावती के पति दलपत शाह की मृत्यु 1548 ईस्वी में हुई, उस समय उनका नाबालिग पुत्र बीर नारायण गद्दी पर बैठा और दुर्गावती उसकी संरक्षिका के तौर पर नियुक्त हुई। रानी ने एक संरक्षिका और शासिका के रूप में एक कायस्थ और एक ब्राह्मण योग्य मंत्रियों के सहयोग सेर प्रशासन को कुशलतापूर्वक चलाया। रानी के नेतृत्व में राज्य खुशहाली से झूम उठा और किसानों की दशा उत्तम हो गई। लोग सोने और हाथियों के रूप में टैक्स देते थे।
उनके राज्य में दह्र्म और शिक्षा का विकास हुआ। उन्होंने आचार्य बिट्ठलनाथ को गढ़ा में पुष्टिमार्ग पंथ का एक केन्द्र स्थापित करने की अनुमति देकर धर्म को प्रोत्साहन दिया और शिक्षा को भी प्रोत्साहित किया। रानीताल, चेरीताल और अधारताल जैसे जलाशयों का निर्माण कराकर राज्य को सुन्दर बनाया।
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राज्य की रक्षा
रानी दुर्गावती ने अपने राज्य की रक्षा के लिए दुर्गों और सीमाओं को सुरक्षित किया। वह एक कुशल घुड़सवार और तलवारबाज़ थी। वह सेना का आगे बढ़कर नेतृत्व करती थी। इस राज्य के 23000 गांव थे जिसमें से 12000 सीधे गुर्गावती के अधीन आते थे और अन्य शेष जमींदारों के नेतृत्व में थे।
रानी की सेना में 20,000 घुड़सवारों, 1,000 युद्ध के हाथियों और पैदल सैनिकों का कुशल संगठन था। तारीख-ए-फरिश्ता के लेखक (मुहम्मद कासिम फ़रिश्ता) के अनुसार जब मालवा के शासक बाज़ बहादुर ने 1555 और 1560 के मध्य दुर्गावती के राज्य पर आक्रमण किया तो रानी ने उसे सफलतापूर्वक खदेड़ दिया और अपने राज्य की रक्षा की।
मुग़ल और रानी दुर्गावती
अपने साम्राज्य विस्तार और एकीकरण ने रानी दुर्गावती और मुग़ल साम्राज्य की सीमाओं को नजदीक ला दिया। अपने साम्राज्य विस्तार में अकबर ने भी 1562 ईस्वी में मालवा के शासक बाज़ बहादुर को पराजित किया और मालवा को मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बना लिया। रीवा और पन्ना के राज्यों को पराजित करने के बाद अब मुग़लों के सामने गढ़ा साम्राज्य था।
मुग़लों ने रानी दुर्गावती को पराजित करने के छल-कपट का सहारा लिया। इस काम के लिए कारा-मानिकपुर के मुगल सूबेदार असफ़ खान को लगाया गया, उसने रानी से मित्रता कर ली और उसके खजाने और सेना तथा दुर्गों की जानकरी एकत्र कर ली। इसके बाद असफ खान ने 1564 ईस्वी में 10000 घुड़सवारों के साथ राज्य पैट आक्रमण कर दिया। उस समय रानी के शाही सैनिक छूती पर थे और कुछ देहात में तैनात थे। इस कठीण चुनौती से रानी घबराई नहीं और उसने लड़ने का फैसला किया। रानी ने 500 सैनिकों के साथ जंगलों और पहाड़ियों को पार करते हुए गाँव से सैनिक एकत्र किया। रानी ने अंततः दुशमन से युद्ध करने का निर्णय लिया। उस समय उनके पास 5000 सैनिक थे।
अगले दिन भयंकर युद्ध छिड़ गया। रानी की हस्ती सेना के सेनापति अर्जुन दास भाई, शहीद हुए। इसके बाद रानी ने खुद सेना की कमान संभाली और शाम होते होते मुग़ल सेना को पराजित कर दिया। 300 मुग़ल सैनिकों को नरक भेज दिया गया।
अगली दिन असफ खान फिरसे एक बड़ी सेना लेकर मैदान में आ खड़ा हुआ। रानी ने अपने पुत्र के साथ अपने पसंदीदा हाथी सरमन पर बैठकर मोर्चा संभाला। उसने कई बार मुग़ल सेना को पीछे खदेड़ा। लेकिन अंततः उनका पुत्र घायल हुआ जिसे युद्ध से हटाना पड़ा। उसके बाद रानी के गले और दाहिनी कनपटी पर तीर लगे जिससे वो मूर्छित हो गई।
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स्वयं खंजर घोंपकर किया जीवन का अंत
रानी को जब होश आया तो उसने महसूस किया कि वह अब लड़ नहीं पायेगी और दुश्मन मजबूत स्थिति में है तो उसने अपने हाथी सेना के सेनापति आधार बघेला को कहा कि वह एक खंज़र से उन्हें मार डाले। मगर आधार बघेला ने ऐसा करने ऐसे मना कर दिया और उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाने की पेशकश की। मगर रानी ने उसकी बात नहीं मानी और दुश्मन से बचने के लिए खुद अपने खंज़र से अपनी जान ले ली। इस प्रकार, 24 जून 1564 को बहादुर रानी दुर्गावती की जीवन लीला सम्पत हो गई।

हालाँकि मुग़ल सेना को राज्य के दुर्गों को अपने कब्जे में लेने के लिए काफी मशक्क्त करनी पड़ी। रानी के पुत्र बीर नारायण ने अंत तक लड़ते हुए अपने प्राण दिए और मगल की रानियों और स्त्रियों ने जौहर कर लिया।
निष्कर्ष
इस प्रकार रानी दुर्गावती ने अपने राज्य की मृत्यु तक रक्षा की। वह पहली हिन्दू शासिका थी जिसने राज्य की बागडोर अपने हाथ ली और कुशलतापूर्वक शासन किया।
My name is Dr Santosh Kumar Sain and I am a Government Teacher. I am fond of writing and through this blog I will introduce you to the biographies of famous women.









