SavitriBai Phule की जयंती सम्पूर्ण भारत में 3 जनवरी को मनाई जाती है। सावित्रीबाई फुले प्रसिद्ध समाज सुधारक ज्योतिराव फुले की पत्नी थीं। अपने पति के संघर्ष और प्रेरणा से सावित्रीबाई फुले ने भारत में लड़कियों के लिए प्रथम स्कूल खोला और वे भारत की प्रथम महिला शिक्षिका भी हैं। SavitriBai Phule Jayanti पर हम उनके बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां आपके साथ साझा कर रहे हैं।
उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनकी पहचान सिर्फ शिक्षिका के रूप में ही नहीं है बल्कि वे एक कवयित्री और दार्शनिक भी थी।

| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| नाम | सावित्रीबाई फुले |
| जन्म | 3 जनवरी 1831 |
| जन्मस्थान | नायगांव, सतारा, महाराष्ट्र |
| पिता | खंडोजी नेवसे पाटिल |
| माता | लक्ष्मीबाई |
| पति | ज्योतिराव फुले (विवाह 1840) |
| संतान | यशवंत (दत्तक पुत्र, डॉक्टर बने) |
| शिक्षा | स्नातक + शिक्षक प्रशिक्षण |
| पेशा | शिक्षिका, समाज सुधारक, कवयित्री |
| संस्था | सत्यशोधक समाज |
| लेखन | काव्य फुले (1854), बावनकशी सुबोध रत्नाकर (1892) |
| मृत्यु | 10 मार्च 1897 (प्लेग से) |
सावित्रीबाई फुले जयंती: भारत की प्रथम महिला शिक्षिका का परिचय
सावित्रीबाई फुले जयंती हर वर्ष 3 जनवरी को पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। सावित्रीबाई फुले महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले की पत्नी थीं और भारत की प्रथम महिला शिक्षिका के रूप में जानी जाती हैं। उनके पति की प्रेरणा और संघर्ष से प्रोत्साहित होकर सावित्रीबाई ने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल खोला। यह स्कूल मात्र 9 छात्राओं से शुरू हुआ, लेकिन जल्द ही सैकड़ों लड़कियों का शिक्षा केंद्र बन गया। सावित्रीबाई न केवल शिक्षिका थीं, बल्कि एक कुशल कवयित्री, दार्शनिक, लेखिका और नारीवाद की अग्रदूत भी थीं।
उनका जन्म 19वीं सदी के रूढ़िवादी समाज में हुआ, जहां महिलाओं और दलितों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। फिर भी, सावित्रीबाई ने जातिवाद, पितृसत्ता और अंधविश्वासों के खिलाफ संघर्ष कर महिला शिक्षा की नींव रखी। उनकी जयंती पर हम उनके जीवन, योगदान और विरासत को याद करते हैं। 2025 में सावित्रीबाई फुले जयंती शुक्रवार, 3 जनवरी को मनाई जाएगी। गूगल ने 2017 में उनके 186वें जन्मदिन पर डूडल बनाकर सम्मानित किया था। पुणे विश्वविद्यालय का नाम 2015 में सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी रखा गया।

सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय: जन्म से मृत्यु तक
जन्म और परिवार पृष्ठभूमि
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के छोटे से गांव नायगांव (तत्कालीन ब्रिटिश बॉम्बे प्रेसीडेंसी) में हुआ। यह गांव पुणे से लगभग 50 किलोमीटर दूर था। वे माली समुदाय (दलित वर्ग) से थीं। उनके पिता का नाम खंडोजी नेवसे पाटिल और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्री चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उस समय दलित परिवारों में शिक्षा की कोई सुविधा नहीं थी, और लड़कियों को घरेलू काम सिखाया जाता था।
बाल विवाह और प्रारंभिक जीवन
1840 में मात्र 9-10 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई का विवाह 13 वर्षीय ज्योतिराव फुले से कर दिया गया। ज्योतिराव खुद एक प्रगतिशील विचारक थे और थॉमस पेन की किताबें पढ़ते थे। विवाह के समय सावित्री अनपढ़ थीं, लेकिन ज्योतिराव ने उन्हें घर पर ही पढ़ाना शुरू किया। ज्योतिराव की चचेरी बहन सगुनाबाई क्षीरसागर (जो खेतों में काम करती थीं) ने भी सावित्री की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सगुनाबाई नारीवाद की प्रारंभिक प्रेरक थीं।
शिक्षा और प्रशिक्षण
विवाह के बाद सावित्रीबाई ने ज्योतिराव, उनके मित्र सखाराम यशवंत परांजपे और केशव शिवराम भवालकर की मदद से प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने दो शिक्षक प्रशिक्षण कोर्स किए: पहला अहमदनगर में अमेरिकी मिशनरी सिंथिया फरार द्वारा संचालित, दूसरा पुणे के नॉर्मल स्कूल से। प्रशिक्षण पूरा कर वे भारत की पहली योग्य महिला शिक्षिका और प्रधानाध्यापिका बनीं।
मृत्यु और पुण्यतिथि
सावित्रीबाई फुले की मृत्यु 10 मार्च 1897 को पुणे में हुई, जब वे 66 वर्ष की थीं। मृत्यु का कारण बुबोनिक प्लेग था। 1897 में प्लेग महामारी फैली थी, और सावित्रीबाई अपने दत्तक पुत्र यशवंत के साथ प्लेग पीड़ितों की सेवा कर रही थीं। पांडुरंग बाबाजी गायकवाड़ के प्लेगग्रस्त पुत्र को अस्पताल ले जाते समय वे संक्रमित हो गईं। उनकी पुण्यतिथि हर वर्ष 10 मार्च को मनाई जाती है। 2025 में यह सोमवार को थी।
सावित्रीबाई फुले जयंती – आगामी 10 वर्ष
| वर्ष | जयंती तिथि | दिन |
|---|---|---|
| 2026 | 03 जनवरी 2026 | शनिवार |
| 2027 | 03 जनवरी 2027 | रविवार |
| 2028 | 03 जनवरी 2028 | सोमवार |
| 2029 | 03 जनवरी 2029 | बुधवार |
| 2030 | 03 जनवरी 2030 | गुरुवार |
| 2031 | 03 जनवरी 2031 | शुक्रवार |
| 2032 | 03 जनवरी 2032 | शनिवार |
| 2033 | 03 जनवरी 2033 | सोमवार |
| 2034 | 03 जनवरी 2034 | मंगलवार |
| 2035 | 03 जनवरी 2035 | बुधवार |
सावित्रीबाई फुले की शिक्षा यात्रा: अनपढ़ से शिक्षिका तक
सावित्रीबाई विवाह के समय पूरी तरह अनपढ़ थीं, जो उस युग की सामान्य स्थिति थी। ज्योतिराव फुले ने उन्हें मराठी, अंग्रेजी और गणित सिखाया। सगुनाबाई क्षीरसागर ने घरेलू काम के बीच पढ़ाई में मदद की। बाद में अहमदनगर और पुणे के कोर्स ने उन्हें औपचारिक योग्यता दी। 1847 में वे शिक्षिका बनीं। उनकी शिक्षा ने साबित किया कि इच्छाशक्ति से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।
सावित्रीबाई फुले का शिक्षा योगदान: 18 स्कूलों की स्थापना

| स्कूल का नाम/स्थान | स्थापना वर्ष | स्थान | विशेष टिप्पणी |
|---|---|---|---|
| भिड़े वाडा बालिका विद्यालय (Bhide Wada Girls’ School) | 1848 | पुणे | भारत का पहला लड़कियों का स्कूल; शुरुआत में 9 छात्राएं, बाद में 25। सावित्रीबाई प्राचार्य थीं। |
| उस्मान शेख के निवास पर बालिका विद्यालय (Girls’ School at Usman Shaikh’s Residence) | 1848 | पुणे | भिड़े वाडा से स्थानांतरण के बाद; फातिमा शेख के सहयोग से संचालित। |
| महारवाड़ा बालिका विद्यालय (Maharwada Girls’ School) | 1851 | पुणे | महार समुदाय की लड़कियों के लिए स्वतंत्र स्कूल; सगुणाबाई के साथ शुरू। |
| रास्ता पेठ बालिका विद्यालय (Rasta Peth Girls’ School) | 1851 (3 जुलाई) | पुणे | सामाजिक सुधार पर जोर; लगभग 150 छात्राओं वाले तीन स्कूलों में से एक। |
| नेटिव फीमेल स्कूल (Native Female School) | 1850s | पुणे | महिलाओं की शिक्षा के लिए स्थापित; महिला सेवा मंडल से जुड़ा। |
| अन्य बालिका विद्यालय (Other Girls’ Schools) | 1848-1852 | पुणे एवं आसपास के गांव | नाम अज्ञात; कुल 18 स्कूलों में शामिल, मुख्य रूप से वंचित जातियों के लिए। 1852 तक पुणे में 18 स्कूल संचालित। |
पहला लड़कियों का स्कूल: भिड़ेवाड़ा में शुरुआत
1 जनवरी 1848 को सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने पुणे के भिड़ेवाड़ा में लड़कियों का पहला स्कूल खोला। तात्या साहेब भिड़े के घर में शुरू हुआ यह स्कूल 9 छात्राओं से चला। पाठ्यक्रम में गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन शामिल थे – पश्चिमी मॉडल पर। फातिमा शेख (भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका) ने सहायता की।
स्कूलों का विस्तार और छात्र संख्या
1851 तक फुले दंपत्ति ने पुणे में 3 स्कूल खोले, कुल 18 स्कूल स्थापित किए। एक स्कूल में 150+ लड़कियाँ पढ़ती थीं – सरकारी स्कूलों के लड़कों से अधिक। शिक्षण पद्धति रोचक थी: कहानियाँ, खेल और व्यावहारिक ज्ञान। सभी जातियों की लड़कियाँ पढ़ती थीं। 1850 के दशक में नेटिव फीमेल स्कूल और सोसाइटी फॉर प्रमोटिंग एजुकेशन ऑफ महार्स एंड मांग्स ट्रस्ट बनाए।
फातिमा शेख की भूमिका: सावित्रीबाई फुले की सहयोगी और प्रथम सहशिक्षिका
फातिमा शेख (1831-1900) भारतीय इतिहास की एक अनसुनी नायिका हैं, जिन्हें भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका और सामाजिक सुधार आंदोलन की अग्रणी माना जाता है। वे सावित्रीबाई फुले की सबसे घनिष्ठ सहयोगी और सखी थीं, जिन्होंने 19वीं शताब्दी में महिलाओं की शिक्षा के क्रांतिकारी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
फातिमा का जन्म पुणे के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, और वे ज्योतिराव फुले की पड़ोसन थीं। जब सावित्रीबाई ने 1848 में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलने का संकल्प लिया, तो फातिमा ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना घर दान कर दिया। भिड़े वाड़ा में शुरू हुआ पहला स्कूल असफल होने के बाद, फातिमा के निवास पर ही दूसरा स्कूल स्थापित किया गया, जहाँ वे स्वयं शिक्षिका बनीं।
फातिमा शेख की भूमिका बहुआयामी थी:
- शिक्षण और प्रशिक्षण: वे सावित्रीबाई के साथ मिलकर लड़कियों को पढ़ातीं, विशेष रूप से वंचित जातियों (जैसे महार और मांग) की छात्राओं को। वे सावित्रीबाई को शिक्षण कला सिखाने वाली पहली गुरु भी थीं, जो स्वयं निरक्षर थीं। फातिमा ने सावित्रीबाई को कविताएँ सुनाकर और नैतिक शिक्षा देकर तैयार किया।
- सामाजिक सुधार: उस समय के रूढ़िवादी समाज में महिलाओं के बाहर निकलकर पढ़ाने को पाप माना जाता था। फातिमा ने सावित्रीबाई के साथ पत्थरों और अपमान का सामना किया, लेकिन कभी पीछे नहीं हटीं। उन्होंने जाति भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और विधवाओं, बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया।
- सहयोगी कार्य: 1848 से 1851 तक पुणे में स्थापित 18 स्कूलों के प्रारंभिक चरण में फातिमा सक्रिय रहीं। वे ‘सत्यशोधक समाज’ (1873 में स्थापित) की प्रारंभिक सदस्य थीं, जो समानता पर आधारित था।
फातिमा शेख का योगदान लंबे समय तक भुला दिया गया, लेकिन आधुनिक इतिहासकार उन्हें ‘अदृश्य क्रांतिकारी‘ कहते हैं। उनकी कहानी महिलाओं के सशक्तिकरण और अंतर-धार्मिक एकता का प्रतीक है। 2014 में पुणे में उनके सम्मान में एक स्मारक स्थापित किया गया। सावित्रीबाई के बिना फातिमा अधूरी हैं, और फातिमा के बिना सावित्रीबाई का संघर्ष आधा रह जाता। उनकी साझेदारी भारतीय नारी आंदोलन की नींव है।
सावित्रीबाई फुले के सामाजिक सुधार: विधवा, दलित और महिला अधिकार
सावित्रीबाई फुले (1831–1897) 19वीं शताब्दी की सबसे प्रमुख सामाजिक सुधारक थीं, जिन्होंने महिला अधिकार, विधवा पुनर्विवाह, दलित शिक्षा, जाति-विरोध, बाल विवाह निषेध और सती प्रथा विरोध जैसे मुद्दों पर क्रांतिकारी कार्य किए। उनके सुधार ज्योतिराव फुले के साथ सहयोगी थे, लेकिन सावित्रीबाई ने स्वयं सक्रिय नेतृत्व किया। नीचे उनके तीन प्रमुख क्षेत्रों में योगदान को विस्तार से समझाया गया है:
1. विधवा अधिकार और पुनर्विवाह
| कार्य | विवरण | प्रभाव |
|---|---|---|
| बाल विधवाओं का गृह (1854) | पुणे में पहला विधवा आश्रम स्थापित किया। गर्भवती विधवाओं को शरण, प्रसव सहायता और बच्चे को गोद लेने की व्यवस्था। | 100+ विधवाओं को संरक्षण; सामाजिक बहिष्कार से बचाव। |
| मुंडन प्रथा का विरोध | विधवाओं के सिर मुंडवाने की प्रथा का खुला विरोध। स्वयं विधवाओं के बाल संवारती थीं। | रूढ़िवादी समाज में हलचल; विधवाओं में आत्मसम्मान जागा। |
| पुनर्विवाह प्रोत्साहन | विधवाओं से कहा: “पुनर्विवाह करो, जीवन दोबारा शुरू करो।” कई विधवाओं का विवाह करवाया। | 1850s में 10+ पुनर्विवाह; कानूनी मान्यता (1856 विधवा पुनर्विवाह अधिनियम) में अप्रत्यक्ष योगदान। |
| कविता: “विधवा स्त्री विनाश” | विधवाओं की पीड़ा पर कविता लिखी, जो सामाजिक जागृति का हथियार बनी। | जनमानस में सहानुभूति जागी। |
उदाहरण: काशीबाई नामक विधवा को आश्रम में रखा, उसका बच्चा गोद लिया और बाद में उसका पुनर्विवाह करवाया।
2. दलित शिक्षा और जाति-विरोध
| कार्य | विवरण | प्रभाव |
|---|---|---|
| दलित लड़कियों के लिए स्कूल (1848–52) | महार, मांग, चमार समुदाय की लड़कियों को मुफ्त शिक्षा। 18 स्कूलों में अधिकांश दलित छात्राएँ। | 500+ दलित बालिकाएँ शिक्षित; पहली पीढ़ी की साक्षर दलित महिलाएँ। |
| सत्यशोधक समाज (1873) | ज्योतिराव के साथ सह-संस्थापक। दलित-शूद्रों का विवाह बिना ब्राह्मण पुरोहित के करवाना शुरू किया। | 100+ सत्यशोधक विवाह; ब्राह्मण वर्चस्व को चुनौती। |
| अस्पृश्यता के खिलाफ साहस | दलित बच्चों को गोद में उठातीं, उनके घर भोजन करतीं। | सामाजिक बहिष्कार के बावजूद प्रेरणा बनीं। |
| नाइट स्कूल और वयस्क शिक्षा | दलित मजदूरों के लिए रात के स्कूल। स्वयं पढ़ाती थीं। | कार्यरत दलितों में साक्षरता बढ़ी। |
विशेष: 1851 में महारवाड़ा स्कूल विशेष रूप से महार समुदाय के लिए खोला।
3. महिला अधिकार और सशक्तिकरण
| कार्य | विवरण | प्रभाव |
|---|---|---|
| प्रथम महिला शिक्षिका (1848) | भारत की पहली महिला शिक्षक बनीं। भिड़े वाड़ा में पहला स्कूल। | महिलाओं के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश का द्वार खोला। |
| महिला सेवा मंडल (1852) | महिलाओं की सभा; बाल विवाह, सती प्रथा, दहेज पर चर्चा। | पहली महिला संगठन; जागृति का केंद्र। |
| शिक्षा में समानता | लड़के-लड़कियों को एक साथ पढ़ाया (सह-शिक्षा)। | लैंगिक समानता का मॉडल। |
| कविता और साहित्य | “गोरी”, “बाल विवाह निषेध” जैसी रचनाएँ। सरल भाषा में सामाजिक संदेश। | जन-जागरण; मराठी स्त्री साहित्य की नींव। |
| स्वावलंबन प्रशिक्षण | स्कूलों में सिलाई, बुनाई, लेखन सिखाया। | आर्थिक स्वतंत्रता की शुरुआत। |
समग्र योगदान का सार
| क्षेत्र | प्रमुख उपलब्धि | दीर्घकालिक प्रभाव |
|---|---|---|
| शिक्षा | 18 स्कूल, 500+ छात्राएँ | भारत में लड़कियों की शिक्षा की नींव |
| विधवा सुधार | पहला आश्रम, पुनर्विवाह | विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856) में योगदान |
| दलित उत्थान | दलित शिक्षा, सत्यशोधक समाज | डॉ. आंबेडकर के आंदोलन की प्रेरणा |
| महिला सशक्तीकरण | शिक्षिका, लेखिका, संगठनकर्ता | आधुनिक नारीवाद की अग्रदूत |
बालहत्या प्रतिबंधक गृह
28 जनवरी 1853 को बालहत्या रोकने के लिए गृह स्थापित। विधवाओं के अवैध बच्चों को मारने की प्रथा थी – सावित्रीबाई ने उन्हें आश्रय दिया। काशीबाई (ब्राह्मण विधवा) के पुत्र को गोद लिया, नाम यशवंत रखा।
सत्यशोधक समाज और अन्य आंदोलन
1873 में ज्योतिराव द्वारा स्थापित सत्यशोधक समाज में सावित्रीबाई सक्रिय। 1893 में अध्यक्ष बनीं। सती प्रथा, विधवा मुंडन, बाल विवाह विरोध। विधवा पुनर्विवाह प्रोत्साहन। दलितों के लिए अलग कुएँ खुदवाए। महिला सेवा मंडल और प्रसूति गृह स्थापित।
विरोध और चुनौतियाँ
स्कूल जाते समय रूढ़िवादी लोग गोबर, कीचड़, पत्थर फेंकते। अतिरिक्त साड़ी ले जातीं। 1849 में घर से निकाले गए – उस्मान शेख ने आश्रय दिया। फिर भी नहीं रुकीं।
सावित्रीबाई फुले का लेखन कार्य: कविताएँ और पुस्तकें
सावित्रीबाई फुले (1831-1897) न केवल एक शिक्षिका और सामाजिक सुधारक थीं, बल्कि एक संवेदनशील कवयित्री भी थीं। उनका लेखन मुख्य रूप से महिलाओं के अधिकारों, जाति भेदभाव के विरोध, विधवा विवाह, बाल विवाह निषेध और वंचित वर्गों की पीड़ा को दर्शाता है। 19वीं शताब्दी में महिलाओं द्वारा हिंदी/मराठी में रचित साहित्य दुर्लभ था, और सावित्रीबाई का योगदान क्रांतिकारी था। उनके अधिकांश कार्य ज्योतिराव फुले के साथ सहयोगी थे, और कई रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं या पुस्तकों में प्रकाशित हुईं।
1854 में 23 वर्ष की आयु में ‘काव्य फुले’ प्रकाशित – जातिवाद, महिला अधिकार पर कविताएँ। 1892 में ‘बावनकशी सुबोध रत्नाकर’। ज्योतिराव के भाषण संपादित। कविता “उठो, शिक्षा प्राप्त करो” प्रेरणादायक।
| क्रमांक | रचना का नाम | प्रकार | प्रकाशन वर्ष (लगभग) | विवरण/विशेष टिप्पणी |
|---|---|---|---|---|
| 1 | काव्य फुलें (Kavya Phule) | कविता संग्रह | 1854 | महिलाओं की दशा, जातिगत असमानता और शिक्षा पर कविताएँ; मराठी में रचित, ज्योतिराव के समर्थन से। यह उनका प्रारंभिक संग्रह था। |
| 2 | विधवा स्त्री विनाश (Vidhva Stri Vinash) | कविता | 1854 | विधवाओं की दुखद स्थिति पर आधारित; सामाजिक कुरीतियों का चित्रण। पत्रिका ‘दीनबंधु’ में प्रकाशित। |
| 3 | गोरी (Gori) | कविता | 1854 | गोरी महिलाओं की पीड़ा और सौंदर्य के पीछे छिपे दर्द पर; स्त्री-विमर्श का प्रतीक। |
| 4 | माझा गीत (Majha Geet) | कविता | 1892 | व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित गीत; शिक्षा और संघर्ष की कहानी। बाद के वर्षों में रचित। |
| 5 | बाल विवाह निषेध (Bal Vivah Nishedh) | कविता | 1850s | बाल विवाह के खिलाफ तीखा प्रतिवाद; सामाजिक जागृति के लिए। |
| 6 | सत्यबोध (Satyabodh) | पत्रिका (सहयोगी लेखन) | 1858-1860 | ज्योतिराव के साथ संपादित; इसमें कविताएँ, निबंध और सामाजिक टिप्पणियाँ शामिल। महिलाओं की शिक्षा पर लेख। |
| 7 | दीनबंधु (Deenbandhu) | पत्रिका (सहयोगी लेखन) | 1877 से | ज्योतिराव द्वारा शुरू, सावित्रीबाई के लेख/कविताएँ प्रकाशित; वंचितों के अधिकारों पर। |
| 8 | बालहत्या निषेध (Balhatya Nishedh) | कविता/निबंध | 1850s | कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ; नैतिक अपील। |
सावित्रीबाई फुले की प्लेग सेवा और मृत्यु
सावित्रीबाई फुले, भारत की प्रथम महिला शिक्षिका और सामाजिक सुधारक, ने अपना जीवन वंचितों की सेवा में समर्पित किया। 1897 में पुणे में प्लेग महामारी का प्रकोप हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों को क्वारंटाइन कर दिया था। इस संकटकाल में सावित्रीबाई ने मानवता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के निधन (1890) के बाद भी सामाजिक कार्य जारी रखा और प्लेग पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आ गईं। उन्होंने एक अस्थायी अस्पताल की स्थापना की, जहाँ वे स्वयं रोगियों की देखभाल करतीं, भोजन वितरित करतीं और दवाइयाँ बाँटतीं। उनके साथ उनकी सौतेली बेटी यशवंताबाई भी कार्यरत थीं।
सावित्रीबाई ने हजारों प्रभावितों को भोजन पहुँचाया, जिसमें वे अपने हाथों से रोटियाँ बनाकर वितरित करतीं। उनकी यह सेवा निस्वार्थ और निर्भीक थी, जो उस समय की जातिगत और सामाजिक बाधाओं को चुनौती देती थी। दुर्भाग्यवश, इसी सेवा के दौरान वे स्वयं प्लेग के संक्रमण की शिकार हो गईं। 28 फरवरी 1897 को पुणे में उनका निधन हो गया, जब वे मात्र 66 वर्ष की थीं। उनकी मृत्यु ने न केवल उनके समकालीनों को शोकाकुल किया, बल्कि भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय के आंदोलन को एक अपूरणीय क्षति पहुँचाई। सावित्रीबाई की यह अंतिम सेवा उनके जीवन के आदर्शों—शिक्षा, समानता और सेवा—का प्रतीक बनी रही, जो आज भी प्रेरणा स्रोत है।
सावित्रीबाई फुले के अनमोल विचार
- “शिक्षा से ही स्वर्ग के द्वार खुलते हैं और मनुष्य खुद को पहचानता है।”
- “अज्ञानता को नष्ट करो, ज्ञान का दीप जलाओ।”
- “महिलाएँ पुरुषों के समान अधिकार लेकर पैदा होती हैं, लेकिन उन्हें रसोई तक सीमित कर दिया जाता है।”
- “पढ़ाई का महत्व चौका-बर्तन से कहीं अधिक है।”
- “ब्राह्मण स्वघोषित ज्ञानी बन गए, दलितों को छूना पाप।”
सावित्रीबाई फुले से जुड़े रोचक तथ्य
- 16 नवंबर 1852: ब्रिटिश सरकार ने सम्मानित किया।
- 10 मार्च 1998: भारत सरकार ने डाक टिकट जारी।
- दलितों-अछूतों को पढ़ाया, उच्च जाति के विरोध के बावजूद।
- एक प्रेमी जोड़े की हत्या रोककर बचाया।
- यशवंत का विवाह स्वयं कराया (विधवा संतान होने से कोई तैयार नहीं)।
- 18 स्कूलों में हजारों लड़कियाँ शिक्षित।
- नारीवाद की प्रतीक – फुले दंपत्ति को “भारतीय नारीवाद के जनक” कहा जाता है।
सावित्रीबाई फुले की विरासत और सम्मान

सावित्रीबाई ने महिला शिक्षा की क्रांति की। आज भारत में लड़कियाँ शिक्षा में आगे हैं – उनकी देन। पुणे यूनिवर्सिटी उनका नाम। कई स्कूल, सड़कें, पुरस्कार उनके नाम पर। शिक्षक दिवस उनके जन्मदिन पर मनाना उचित।
निष्कर्ष: सावित्रीबाई फुले जयंती का महत्व
सावित्रीबाई फुले ने रूढ़ियों को तोड़कर महिला सशक्तिकरण की मिसाल कायम की। उनकी जयंती हमें शिक्षा, समानता और संघर्ष की प्रेरणा देती है।
सावित्रीबाई फुले जयंती FAQ
सावित्रीबाई फुले कौन थीं?
भारत की प्रथम महिला शिक्षिका और समाज सुधारक।
सावित्रीबाई फुले जयंती कब है?
3 जनवरी। 2025 में शुक्रवार।
भारत की पहली महिला शिक्षिका कौन?
सावित्रीबाई फुले।
पहला लड़कियों का स्कूल कब खोला?
1848 में पुणे में।
पहली मुस्लिम शिक्षिका कौन?
फातिमा शेख।
सावित्रीबाई के पुत्र का नाम?
यशवंत (दत्तक)।
स्रोत-विकिपीडिया
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